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  हरियाली तीज दोहे (भाग - 2)
 जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा  हरियाली-तीज  पर प्रगट किये गये दोहे एवं भाव 
 
हरियाली तीज पर हे गोविन्द राधे।
जित  देखूं  हरि  हरि  ही  दिखा  दे।।

हरियाली तीज पर हे गोविन्द राधे।
हरि बोलूं, हरि देखूं, हरि ही सुना दे।।

हरियाली तीज पर हे गोविन्द राधे।
हरि मिलन की कामना उर में बढ़ा दे।।

हरिहूं की हरितायी गोविन्द राधे।
हिय हर्षित करि हरिहूं बना दे।।

आज हरियाली तीज है गोविन्द राधे।
तन  मन  धन  तीनों  हरि  पै  लुटा  दे।।
 
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा विरचित दोहे)
 समझने के लिये सरल अर्थ- हरियाली तीज पर एक भगवत्प्रेम पिपासु जीव अपने भगवान और गुरु से याचना कर रहा है कि हे हरि-गुरु! ऐसी कृपा करो कि मुझे ऐसी दृष्टि प्राप्त हो कि मैं जिधर नजर डालूं, उधर-उधर ही मुझे आपके (हरि-गुरु) दर्शन हों। मैं केवल आपके नाम एवं गुणों का ही गान करता रहूं, आपकी ही रसमयी चर्चा सुनता रहूं। हे करुणासिन्धु! ऐसी कृपा करो कि नित्य ही मेरे हृदय में आपके प्रेम एवं सेवप्राप्ति की लालसा बढ़ती ही जाय। 
 आज हरियाली तीज है। इस अवसर पर बारम्बार अपनी बुद्धि को स्मरण दिला रहा हूं कि यह तन, मन और धन सब एकमात्र हरि-गुरु की सेवा में ही समर्पित करना है। जिनके हृदय में हरि ही हरि सम्पूर्ण रुप से छा जाते हैं, उनका हृदय तो सदा ही प्रसन्नता से छलकता रहता है, उसका सब कुछ हरिमय ही हो जाता है।
 (सभी दोहे जगद्गुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित किये गये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के ग्रंथ साहित्यों से हैं। सभी साहित्य राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के सर्वाधिकार में हैं।)
 

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