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  संसारी विषय पढ़ने, सुनने, देखने से बाद में वे चिन्तन में बदलकर मन-बुद्धि को संसार में ही मोड़कर आसक्त बना देते हैं!!
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 356

(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज दूसरे कुसंग 'सांसारिक विषयों का चिन्तन-मनन' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)

★ चौथा कुसंग - संसारी विषयों का चिन्तन-मनन

...भगवदविषयों से विपरीत विषयों का पढ़ना, दूसरा सुनना, तीसरा देखना, चौथा सोचना आदि भी कुसंग है।

किन्तु इन सबमें सबसे भयानक कुसंग सोचना ही है, क्योंकि अंत में पढ़ने, सुनने एवं देखने आदि वाले कुसंग भी यहीं पर आ जाते हैं। फिर यहीं से कार्यवाही आरंभ हो जाती है। सोचते-सोचते मनोवृत्तियाँ उसी के अनुकूल होती जाती है एवं बुद्धि भी मोहित होती जाती है, जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि कुछ काल बाद मन पूर्णतया उन विपरीत विषयों में लीन हो जाता है। इस सम्बन्ध में गीता में एक अत्यन्त सुन्दर अर्धाली है;

ध्यायतो विषयान् पुंसः संगस्तेषूपजायते।
(गीता 2-62)

अर्थात जिस विषय का हम बार-बार चिन्तन करते हैं, उसी में हमारी आसक्ति हो जाती है।

किन्तु ध्यान में रखने की बात यह है कि चिन्तन तो पश्चात होता है, पूर्व में तो भगवद-विपरीत विषयों का सुनना, पढ़ना आदि है। अतएव यदि पूर्व कारण से बचा जाये तो अत्यन्त ही सरलतापूर्वक कुसंग से निवृत्ति हो सकती है। यदि आग को लकड़ी न मिले तो अग्नि कैसे बढ़ेगी? फिर यदि साथ ही उस अन्तरंग कुसंग रूपी आग में श्रद्धायुक्त सत्संग रूपी जल भी छोड़ा जाय तब तो आग धीरे-धीरे स्वयं ही बुझ जायेगी। देखो, प्रायः हम लोग यह सब जानते हुये भी बहादुरी दिखाने का स्वांग रचते हैं, अर्थात कुसंग की प्रारंभिक अवस्था में ही सावधान न होकर यह कह देते हैं - 'अरे! कुसंग हमारा क्या कर लेगा, हम सब कुछ समझते हैं!!!'

अरे भाई! विचार करो कि यद्यपि डॉक्टर यह समझता है कि अमुक विष मारक है, किन्तु परिहास में भी पी लेता है तो उसका वह जानना थोड़े ही काम देगा, विष तो अपना मारक गुण दिखायेगा ही।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज
०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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