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 अगर बहुत अधिक खर्च हो रहा हो या ऋण में डूबे हों तो रखे इसे अपने पास... लक्ष्मी का होगा वास
  ज्योतिष में गोमती चक्र का बहुत महत्व है। इसके अतिरिक्त तांत्रिक विद्या में भी इसका बहुत प्रयोग किया जाता है। लगभग हर प्रमुख हिन्दू त्यौहार पर गोमती चक्र का उपयोग किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि गोमती चक्र माता लक्ष्मी को रोकने के लिए उपयोग में लाया जाता है। अर्थात अगर किसी का खर्च बहुत अधिक हो अथवा ऋण में डूबा हो तो गोमती चक्र को पास में रखने का विशेष प्रावधान है। इससे लक्ष्मी हमेशा प्रसन्न रहेंगी। लक्ष्मी पूजा, विशेषकर दीपावली में गोमती चक्र का बड़ा महत्व माना जाता है। इसके अतिरिक्त भी गोमती चक्र के कई ज्योतिष उपयोग हैं। गोमती चक्र को माला अथवा अंगूठी के रूप में पहना जाता है।
 हिन्दू धर्म में गोमती नदी का बड़ा महत्व है। हमारी पांच सबसे पवित्र नदियों में से एक गोमती भी है। मान्यता है कि गोमती महर्षि वशिष्ठ की पुत्री थी जो बाद में नदी के रूप में परिणत हो गयी। इसी पवित्र नदी के अंदर एक विशेष पत्थर पाया जाता है जिसे हम गोमती चक्र के नाम से जानते हैं। ये पत्थर उतना कीमती तो नहीं होता किन्तु बहुत दुर्लभ होता है। ये कैल्शियम का पत्थर होता है जिसमे चक्र का निशान होता है जो इसके नाम का मुख्य कारण है।  विशेष रूप से ज्योतिष शास्त्र में इसे बहुत पवित्र माना जाता है। मुख्य रूप से गोमती चक्र श्रीहरि और श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है।
 पुराणों में भी गोमती चक्र की उत्पत्ति की कथा दी गयी है। इसे हिन्दू धर्म में वर्णित 84 रत्नों से एक माना गया है। ये कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन के विषय में हम सभी जानते हैं किन्तु आम मान्यता ये है कि समुद्र मंथन से कुल 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी किन्तु पुराणों में वर्णित है कि समुद्र मंथन से इन 14 "मुख्य" रत्नों के अतिरिक्त 70 और रत्न निकले थे। इस प्रकार उस समुद्र मंथन से कुल 84 रत्नों की प्राप्ति हुई थी किन्तु मुख्य रत्नों में केवल 14 की गिनती होती है।
 गोमती चक्र भी उन्हीं 84 रथों में से एक माना जाता है। ऐसी कथा है कि जब समुद्र मंथन से 14 रत्नों की प्राप्ति हो गयी तब उसके समापन की बात उठी। किन्तु देवों और दैत्यों ने ये सोचकर कि अभी उन्हें और रत्नों की प्राप्ति होगी, समुद्र मंथन जारी रखा। किन्तु दोनों पक्ष बहुत श्रमित थे और अब मंदराचल पर्वत और वासुकि नाग को संभाल कर रखना उनके लिए अत्यंत कठिन हो गया। धरती माता भी मंदराचल के घर्षण और गर्जन से तप्त हो गयी।  तब उन्होंने एक गाय का रूप लिया और भगवान विष्णु के पास पहुंची और उन्होंने अपनी व्यथा उन्हें बताई। तब श्रीहरि ने अपने सुदर्शन चक्र को समुद्र पर चलाया जिससे एक महान चक्रवात उत्पन्न हुआ। वो चक्रवात इतना भयानक था कि उसके वेग से सम्पूर्ण मंदराचल पर्वत वासुकि नाग सहित समुद्र के ऊपर आ गया। इसके बाद उस महान आयुध सुदर्शन चक्र की शक्ति से मंदराचल स्वत: ही घूमने लगा और उसी वेग से समुद्र मंथन होने लगा। 
 तब उस समुद्र मंथन से समुद्र के अंदर के बहुमूल्य पत्थर, मणियां, धातु और शंख इत्यादि स्वत: समुद्र से बाहर आने लगे। अंत में घर्षण इतना तेज हो गया कि समुद्र से निकले धातु उसके ताप से पिघल गए और समुद्र के सतह पर वृताकार रूप में जम गए। उनकी संख्या इतनी अधिक हो गयी कि वो चक्रवात भी थम गया और समुद्र मंथन स्वत: ही रुक गया। चूँकि धरती माता के कारण श्रीहरि ने वो श्रम किया था, उस रत्न का नाम "गोमातृका" पड़ा। समय के साथ उस गोमातृका को गोमती चक्र के नाम से जाना जाने लगा। 
 
 

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