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18 अगस्त को पवित्रा एकादशी, संतान प्राप्ति की कामना को पूर्ण करता है यह व्रत


शास्त्रों में श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा या पवित्रा एकादशी बताया गया है। इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ जगत के पालनहार भगवान श्री विष्णुजी की विधि-विधान से पूजा करने का विधान है। मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से वाजपेयी यज्ञ का फल मिलता है एवं भगवान विष्णु अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। संतान प्राप्ति की कामना के लिए इस व्रत को अमोघ माना गया है। इस व्रत को करने वाले भक्तों को न केवल स्वस्थ तथा दीर्घायु संतान प्राप्त होती है बल्कि उनके सभी प्रकार के कष्ट भी दूर हो जाते हैं। इस वर्ष पवित्रा एकादशी का पर्व 18 अगस्त,बुधवार को मनाया जाएगा। पवित्रा एकादशी की कथा का श्रवण एवं पठन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है, वंश वृद्धि होती है तथा समस्त सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
श्रीनारायण की करें पूजा
श्रावण पवित्रा एकादशी सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है। चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है। इस दिन समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान श्री नारायण की उपासना करनी चाहिए। रोली, मोली, पीले चन्दन, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए। इस दिन '? नमो भगवते वासुदेवाय ' का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। योग्य संतान के इच्छुक दंपत्ति प्रात: स्नान के बाद पीले वस्त्र पहनकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। इसके बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए। इस दिन भक्तों को परनिंदा, छल-कपट,लालच, द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर,श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
पवित्रा एकादशी की कथा
कथा के अनुसार द्वापर युग के प्रारंभ का समय था, महिष्मतीपुर में राजा महिजित अपने राज्य का पालन करते थे।नि:संतान होने के कारण राजा बहुत दु:खी रहते थे। प्रजा से राजा का दु:ख देखा नहीं गया और वह लोमश ऋषि के पास गये एवं ऋषि से राजा के नि:संतान होने का कारण और उपाय पूछा। लोमश ऋषि ने बताया कि राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था।एक दिन जेठ के शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि को,जब दोपहर का सूर्य तप रहा था,वह एक जलाशय पर पानी पीने पहुंचा।तभी  एक गाय अपने बछड़े सहित वहां पानी पीने आ गई। वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हांककर दूर हटा  दिया और स्वयं पानी पीकर प्यास बुझाई।उसी पापकर्म के कारण राजा को नि:संतान रहना पड़ रहा। लोमश ऋषि ने उन लोगों से कहा कि अगर आप लोग चाहते हैं कि राजा को संतान की प्राप्ति हो तो श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत रखें और द्वादशी के दिन अपने व्रत का पुण्य राजा को दान कर दें। राजा के शुभचिंतकों ने ऋषि के बताए विधि के अनुसार व्रत किया और व्रत के पुण्य को दान कर दिया। इससे राजा को सुंदर एवं स्वस्थ्य पुत्र की प्राप्ति हुई।मान्यता है कि जो भी व्यक्ति नि:सन्तान है, वो व्यक्ति यदि इस व्रत को शुद्ध मन से पूरा करे तो अवश्य ही उसकी इच्छा पूरी होती है और उसे संतान की प्राप्ति होती है।

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