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 सबसे पहले देवी इंद्राणी ने पति इंद्रदेव को बांधा था रक्षा सूत्र... जानें क्यों कहते हैं रक्षाबंधन को  रक्षा दिवस....
  रक्षाबंधन एक अति प्राचीन पर्व है जो हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व में बहनें अपने भाइयों के हाथ में रेशम के धागों का एक सूत्र बांधती है और उसकी रक्षा की कामना करती है।   किन्तु आपको ये जानकर हैरानी होगी कि सर्वप्रथम रक्षाबंधन का प्रसंग पति और पत्नी के सन्दर्भ में आता है। जब प्रथम देवासुर संग्राम में दैत्य देवों पर भारी पडऩे लगे और देवों की पराजय सामने थी तब देवराज इंद्र अपने गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे और उन्हें अपनी व्यथा बताई। उनकी पत्नी इन्द्राणी भी वहीं बैठी थी। उन्होंने अपने वस्त्र से रेशम का एक धागा अलग किया और उसे अभिमंत्रित कर इंद्र की रक्षा हेतु उनकी कलाई पर बांध दिया। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। उस रक्षा कवच के कारण इंद्र उस संग्राम में विजय हुए। तब से ही रक्षाबंधन के इस पवित्र पर्व का आरम्भ हुआ।
रक्षाबंधन हो लेकर कई धार्मिक कहानियां प्रचलित हैं....जैसे-
-प्राचीन काल में जब हयग्रीव नामक राक्षस ने वेदों का अपहरण कर लिया तब आज ही के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार लेकर उसका वध किया और वेदों की रक्षा की। तब से आज के दिन को रक्षा दिवस के नाम से जाना जाता है।
-सूर्यदेव की पुत्री यमुना द्वारा भी यमराज को राखी बांधने का प्रसंग हमें पुराणों में मिलता है। भाईदूज की शुरुआत भी यही से हुई।
-भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि का मान मर्दन किया और उन्हें पाताल का राज्य दे दिया। उनकी आज्ञा का पालन करते हुए दैत्यराज बलि पाताल तो चले गए किन्तु वहां जाकर उन्होंने नारायण की घोर तपस्या की। जब श्रीहरि प्रसन्न हुए तब बलि ने वरदान माँगा कि वे वही पाताल में रहें। तब भगवान विष्णु वहीं पाताललोक में स्थित हो गए। जब माँ लक्ष्मी को इस बात की जानकारी हुई तब वे घबरा कर पाताललोक पहुँची और दैत्यराज बलि की कलाई में रेशम की डोर बांध कर अपनी रक्षा की गुहार लगाई। इससे बलि ने देवी लक्ष्मी को अपनी भगिनी मानते हुए उन्हें उनकी रक्षा का वचन दिया। तब देवी लक्ष्मी ने दैत्यराज बलि से अपने पति को वापस मांग लिया। तब से भाइयों द्वारा बहनों को वचन के साथ-साथ कुछ उपहार देने की प्रथा भी चली और दैत्यराज बलि के नाम पर इस पर्व का एक नाम "बलेव" भी पड़ा। यही कारण है कि रक्षासूत्र बांधते हुए हम इस मन्त्र का उच्चारण करते हैं: येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥ - अर्थात: जिस सूत्र से महान दानवेन्द्र बलि को बांधा गया था, उसी रक्षासूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूँ। अत: हे रक्षे (राखी) तुम अपने संकल्प से कभी विचलित ना होना। तभी से आज तक ये मन्त्र किसी भी प्रकार के सूत्र को बांधते समय बोला जाता है।
-एक बार श्रीगणेश के पुत्रों शुभ एवं लाभ ने अपने पिता को कहा कि उनकी कोई बहन नहीं है। उन्होंने अपने पिता से उन्हें एक बहन देने का अनुरोध किया। तब श्रीगणेश ने अपनी पत्नी रिद्धि एवं सिद्धि के सतीत्व के ताप से "संतोषी माता" को प्रकट किया। तब संतोषी मां द्वारा शुभ एवं लाभ को राखी बांधने का प्रसंग आता है।
-रक्षाबंधन का एक प्रसंग महाभारत में तब आता है जब राजसु यज्ञ में शिशुपाल का वध करने के पश्चात सुदर्शन की धार से श्रीकृष्ण का रक्त बह निकला। तब द्रौपदी ने अपनी रेशमी साड़ी को चीर कर श्रीकृष्ण के घाव पर बांधा। तब श्रीकृष्ण ने सदैव द्रौपदी की रक्षा का वचन दिया और चीरहरण के समय अपने इस वचन का पालन भी किया। 
-महाभारत में ही जब युधिष्ठिर जब श्रीकृष्ण से संकटों से बचने का उपाय पूछते हैं तो श्रीकृष्ण उन्हें राखी का पर्व मनाने की सलाह देते हैं। यशोदा की पुत्री एकानंगा एवं सुभद्रा द्वारा श्रीकृष्ण एवं बलराम को रक्षासूत्र बांधने का प्रसंग भी आता है। इसके अतिरिक्त एक प्रसंग आता है जब युद्ध से पहले कुंती अभिमन्यु की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हंै।
 -कम्ब एवं तमिल भाषा में रचित रामायण में भी ऋष्यश्रृंग की पत्नी और श्रीराम की बड़ी बहन शांता द्वारा चारों भाइयों को रक्षासूत्र बांधने का वर्णन भी है।
-प्राचीन काल में जब विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पूरी कर गुरुकुल से निकलता था तब उसके गुरु उसकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधते थे ताकि वो उनके द्वारा प्राप्त की गयी विद्या का सदुपयोग कर सके।
 इसके अतिरक्त राखी का ऐतिहासिक महत्वव भी है। जब राजपूत युद्ध को जाते थे तब स्त्रियां उन्हें कुमकुम लगाने के साथ उनकी कलाई पर रेशमी रक्षासूत्र भी बांधती थी। एक ऐसा वर्णन है कि सिकंदर की पत्नी ने पोरस को अपनी पति की रक्षा के लिए राखी बंधी थी। यही कारण था कि पोरस सिकंदर पर प्रहार नहीं कर सका और पराजित हुआ। बाद में उसी रक्षासूत्र के कारण सिकंदर ने पोरस को सम्मानसहित उसका राज्य लौटा दिया।

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