कृष्ण की प्रिय वस्तु (भाग - 1)
- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचन, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु जनों के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है, आइये इन शब्दों को हृदयंगम करें....
- (प्रथम भाग)
यदि श्यामसुन्दर के लिये तुम एक आंसू बहाते हो तो वो तुम्हारे लिये हजार आंसू बहाते हैं। काश कि मेरी इस वाणी और तुम विश्वास कर लेते, तो आंसू बहाते न थकते।
अरे! इसमें तुम्हारा क्या खर्च होता है? इसमें क्या कुछ अक्ल लगाना है? क्या इसके लिये कुछ साधना करनी है? क्या इसमें कोई मेहनत है? क्या यह कोई जप है? आंसू उनको इतने प्रिय हैं, और तुम्हारे पास फ्री हैं। क्यों नहीं उनके लिये बहाते हो? निर्भय होकर उनसे कहो कि, तुम हमारे होकर भी हमें अभी तक क्यों नहीं मिले? तुम बड़े कृपण हो, बड़े निष्ठुर हो, तुमको जरा भी दया नहीं आती। हमारे होकर भी हमें नहीं मिलते हो। इस अधिकार से आंसू बहाओ।
हम पतित हैं, हम अपराधी हैं तो क्या हुआ? हम पतित हैं, तो तुम पतितपावन हो, फिर अभी तक क्यों नहीं मिले? इतना बड़ा अधिकार है, तभी तो वह तुम्हारे एक आंसू बहाने पर हजार आंसू बहाते हैं।
हम लोग जो भजन कीर्तन साधना करते हैं उसमें एक बहुत बड़ी बीमारी है। जरा से आंसू निकल गये, जरा सा रोमांच हो गया, जरा सा ध्यान लग गया तो हम अपने को समझने लगते हैं कि हम भी एक गोपी बन गये। अभी आप को पता ही नहीं है आंसू कितने प्रकार के होते हैं? अभी लाखों करोड़ों आंसू आप बहायेंगे तब असली आंसू पाने की बात बनेगी। यह जो आंसू आप बहाते हैं, भगवान के लिये साधना के समय, यह आंसूू इसलिये हैं कि असली आंसू मिल जाएं।
(शेष प्रवचन कल के दूसरे भाग में..)
(प्रवचन स्त्रोत-आध्यात्म संदेश पत्रिका, मार्च 2005 अंक से।)
(सर्वाधिकार सुरक्षित- जगद्गुरु कृपालु परिषत एवं राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।)
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