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जब दांव सही पड़ा: भारत को एशिया कप में बदलाव का साहस दिखाने से मिली सफलता
राजगीर (बिहार). भारतीय हॉकी टीम के लिए कुछ अनुभवी खिलाड़ियों को हटाकर युवा खिलाड़ियों को मौका देने का दांव एशिया कप में सही साबित हुआ जिसके फाइनल में टीम ने दक्षिण कोरिया को 4-1 के बड़े अंतर से हराकर आठ साल बाद इस खिताब जीतने के साथ अगले साल होने वाले विश्व कप का टिकट पक्का किया। यह जीत टीम को भविष्य में और बदलाव कर युवाओं को अधिक मौके देने के लिए प्रेरित करेगी।
 पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली टीम के तीन खिलाड़ियों, शमशेर सिंह, गुरजंत सिंह और नीलकंठ शर्मा को की जगह मिडफील्डर राजिंदर सिंह और स्ट्राइकर शिलानंद लकड़ा को टीम में शामिल किया गया था। यह कदम एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ क्योंकि दोनों युवा खिलाड़ियों ने सिर्फ एक-एक गोल करने के बावजूद हाल ही में खत्म हुए टूर्नामेंट में काफी प्रभावित किया। भारत की कोर टीम में भविष्य में कुछ और बदलाव देखने को मिल सकते हैं। खासकर 28 नवंबर से 10 दिसंबर तक चेन्नई और मदुरै में होने वाले एफआईएच जूनियर विश्व कप के बाद। अगले साल बेल्जियम और नीदरलैंड में 14 से 30 अगस्त तक होने वाले विश्व कप और जापान में 19 सितंबर से शुरू होने वाले एशियाई खेलों को देखते हुए भारत जूनियर विश्व कप के बाद कुछ होनहार जूनियर खिलाड़ियों को सीनियर स्तर पर आजमा सकता है। हॉकी इंडिया की चयन समिति के अध्यक्ष आरपी सिंह ने पहले ही यह साफ कर दिया है कि खराब प्रदर्शन करने वाले कुछ सीनियर खिलाड़ियों को धीरे-धीरे टीम से बाहर किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमें अपनी टीम बनाते समय उभरते खिलाड़ियों पर भी ध्यान देना होगा। अगर हम एक साथ छह-सात सीनियर खिलाड़ियों को टीम से बाहर कर देंगे तो यह कारगर नहीं होगा। चयन समिति की जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करें कि जो सीनियर खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, उन्हें धीरे-धीरे टीम से बाहर किया जाए। ''  उन्होंने कहा, ‘‘पेरिस ओलंपिक के बाद काफी समय बीत चुका है। हमने यह योजना बहुत पहले ही बना ली थी। अगर हम युवाओं को छोटे टूर्नामेंट में मौका नहीं देंगे, तो हम उन्हें सीधे विश्व कप में नहीं खिला सकते। '' भारत का अक्टूबर से दिसंबर तक का कार्यक्रम काफी व्यस्त है, जिसके दौरान दक्षिण अफ्रीका के टेस्ट दौरे  के अलावा मलेशिया में सुल्तान अजलान शाह कप में हिस्सा लेना है। मुख्य कोच क्रेग फुल्टन इन टूर्नामेंटों में कुछ जूनियर खिलाड़ियों को आजमा सकते हैं। एफआईएच प्रो लीग के यूरोपीय चरण में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद एशिया कप का खिताब हरमनप्रीत सिंह की कप्तानी वाली टीम के लिए एक राहत की तरह आया। टीम ने धीमी शुरुआत से उबरते हुए इस महाद्वीपीय प्रतियोगिता में अपना दबदबा कायम किया और चौथी बार खिताब जीता। उन्होंने पिछली बार 2017 में ढाका में ट्रॉफी जीती थी। टीम इससे पहले 2003 में कुआलालंपुर और 2007 में चेन्नई में एशिया कप चैंपियन बनी थी। भारत ने भले ही अच्छा प्रदर्शन किया हो लेकिन टूर्नामेंट में उसकी शुरुआत उतनी अच्छी नहीं रही। मेजबान टीम को पूल चरण में चीन और कोरिया पर क्रमश: 4-3 और 3-2 से जीत हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। कमजोर कजाखिस्तान को 15-0 से हराने के बाद उनके अभियान ने गति पकड़ी।
 फुल्टन ने कहा, ‘‘ हमारी शुरुआत अच्छी नहीं रही और खिलाड़ियों को यह बात पता थी। कजाखिस्तान के साथ मैच के बाद हमने लय पकड़ी। उस बड़ी जीत के बाद खिलाड़ियों का आत्मविश्वास बढ़ा।'' सुपर  चार चरण में कोरिया के खिलाफ 2-2 से ड्रॉ ने एक बार फिर भारत को वास्तविकता का एहसास कराया।
 टीम ने इसके बाद अपने खेल में कुछ सुधार किया और मलेशिया को 4-1 से और फिर चीन को 7-0 से हराया।
 इस अभियान का एक उत्साहजनक पहलू भारतीय खिलाड़ियों की फिटनेस थी। राजगीर के बेहद गर्म और उमस वाले मौसम में 10 दिनों के अंदर भारतीय खिलाड़ियों ने दबाव वाले सात मैच खेले जो उनके शानदार फिटनेस स्तरों का प्रमाण है। इस टूर्नामेंट ने रक्षा-पंक्ति, मिड-फील्ड और अग्रिम पंक्ति के बीच बेहतर तालमेल देखना बहुत सुखद था।
 टीम शुरुआती मैचों में रक्षा पंक्ति के लचर प्रदर्शन में सुधार करने में सफल रही।
 भारतीय मिडफील्ड की कमान अनुभवी मनप्रीत सिंह, हार्दिक सिंह, विवेक सागर प्रसाद और युवा राजिंदर जैसे खिलाड़ियों ने बखूबी संभाली। एक और पहलू जिसने ध्यान खींचा वह थी स्ट्राइकरों का शानदार प्रदर्शन। अभिषेक, सुखजीत सिंह, मनदीप सिंह, लाकरा और दिलप्रीत सिंह ने कुछ बेहतरीन मैदानी गोल किए।  अभिषेक आक्रमण में सबसे बेहतरीन खिलाड़ी थे और उन्होंने ‘प्लेयर-ऑफ-द-टूर्नामेंट' का पुरस्कार भी जीता। वहीं, दो साल की चोट के बाद राष्ट्रीय टीम में वापसी करने वाले लाकरा ने भी गोल करने और गोल के मौके बनाने करने में शानदार प्रदर्शन किया। टूर्नामेंट के शुरुआती चरणों में संघर्ष करने के बावजूद दिलप्रीत ने कोरिया के खिलाफ फाइनल में दो गोल कर अपने कौशल का परिचय दिया। टूर्नामेंट के दौरान कुछ कमियां भी सामने आईं। जिससे टीम को जल्दी उबरना होगा।
 कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने पूल चरण में पेनल्टी कॉर्नर को आसानी से गोल में बदलकर शानदार शुरुआत की, लेकिन जैसे-जैसे टूर्नामेंट आगे बढ़ा, विरोधी टीमों ने उन्हें सफलता हासिल करने के लिए तरसा दिया। टीम के अन्य ड्रैग फ्लिकर जुगराज सिंह भी अच्छी शुरुआत के बाद लय में नहीं दिखे।
दिग्गज पीआर श्रीजेश की संन्यास के बाद गोलकीपिंग की जिम्मेदारी कृष्ण बहादुर पाठक और सूरज करकेरा साझा करते हैं। जहां करकेरा ने प्रभावित किया, वहीं पाठक अपने साधारण प्रदर्शन के बाद सवालों के घेरे में हैं। फुल्टन इस गुत्थी को जल्द सुलझाना चाहेंगे। 

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