सजल
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
हम हैं हरिश्चंद्र के वंशज, पर इसका अभिमान न था।
शक्ति बहुत है हममें लेकिन, इसका किंचित भान न था।।
वीर शिवा का साहस हममें, पाँव उखाड़ें दुश्मन के।
बुद्धि धैर्य सामर्थ्य बहुत है, दुश्मन भी अनजान न था।।
राम सरिस मर्यादित हैं पर, वार न पहले हम करते।
रावण ने सीता हरण किया, शील हरे शैतान न था।।
माँस काट कर प्राण बचाए, जन्मे राजा शिवि जैसे।
दिया कर्ण दधीचि बलि ने, ऐसा कोई दान न था ।।
विश्व विजय कर के आया था, शीश झुकाया भारत ने।
पोरस के साहस के आगे, सिकंदर महान न था।।
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