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 अंग्रेजी तिथि के अनुसार जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज की आज जयंती; जानें उनका समन्वयात्मक व्यक्तित्व कैसा था?
'जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज - अवतरण दिवस'
(अंग्रेजी तिथि - 5 अक्टूबर 1922, भक्तिधाम मनगढ़ में)

अंग्रेजी तिथि के अनुसार आज 5 अक्टूबर को विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज जी की जयंती है, इस अवसर पर आप सभी सुधी पाठक जनों को हार्दिक शुभकामनायें। 5 अक्टूबर 1922 की मध्यरात्रि को भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहाबाद के निकट मनगढ़ नामक ग्राम में आपका अवतरण माता भगवती की गोद में हुआ था। यह पावन रात्रि शरद-पूर्णिमा की थी। समस्त विश्व में अपने प्रेम, ज्ञान तथा कर्मयोग की सर्वश्रेष्ठता सिद्ध करते हुये जनमानस को समस्त दुःखों से मुक्ति तथा अनंतानंत आनन्द जो कि भक्ति के द्वारा भगवान को प्राप्त कर ही मिल सकता है; का महत्वपूर्ण दिग्दर्शन दिया है। 

इस श्रृंखला के अंतर्गत आज से कुछ हफ्तों तक हम उनके विषय में अनेक महत्वपूर्ण पठन-सामग्री प्रकाशित करेंगे। साथ ही उनके साहित्य व प्रवचन के महत्वपूर्ण अंश भी प्रकाशित होंगे। आज विशेष रूप में उनके निखिलदर्शनसमन्वयात्मक स्वरूप व विश्व के प्रति उनकी 'वसुधैव कुटुंबकं' की भावना के परिचय के रूप में उनके कुछ उद्धरण प्रकाशित किये जा रहे हैं। आशा है कि इससे किंचित रूप में ही सही, उनकी अगाध महिमा का कुछ झाँकी प्राप्त कर सकेंगे साथ ही आत्मा और जीवन की उन्नति के लिये मार्गदर्शन भी....

★ (1) 'सभी धर्मियों का भगवान एक ही है'

'...कोई भी मजहब हो, कोई भी धर्म हो, सबका धर्मी बस एक ही है, जिसे हिन्दू धर्म में 'ब्रह्म' 'परमात्मा' 'भगवान' आदि कहते हैं, इस्लाम में उसी को 'अल्लाह' कहते हैं, फारसी में उसी को 'ख़ुदा' कहते हैं। पारसी लोग उसी को 'अहुरमज्द' कहते हैं। उसी एक भगवान के ये सब नाम हैं। लाओत्सी धर्म वाले 'ताओ' कहते हैं, बौद्ध लोग 'शून्य' कहते हैं। जैन लोग 'निरंजन' कहते हैं, सिक्ख लोग 'सत श्री अकाल' कहते हैं और अंग्रेज लोग 'गॉड' कहते हैं। ये सब उसी एक के अपनी अपनी भाषाओं में नाम हैं...'

★ (2) 'समस्त विश्व के प्रति अपनत्व की भावना'

'...मैं पंजाबी नहीं, गुजराती नहीं, बंगाली नहीं, ब्राह्मण भी नहीं, क्षत्रिय भी नहीं, वैश्य भी नहीं, शूद्र भी नहीं, हिन्दू भी नहीं, सिक्ख भी नहीं, मुसलमान भी नहीं। मैं सबका हूँ, सब मेरे अपने ही हैं, कोई मुझे अपना माने या न माने मैं सबको अपना ही मानता हूँ। भगवान एक ही है। ईश्वर, परमात्मा, ख़ुदा, अल्लाह, गॉड, वाहेगुरु सब उसी के नाम हैं। अनन्त नाम रुपाय...'

★ (3) 'विश्व-शान्ति के लिये दिया गया उनका संदेश'

'...यदि विश्व के सभी मनुष्य श्रीकृष्णभक्ति रूपी शस्त्र को स्वीकार कर लें तो समस्त देशों का, समस्त प्रांतों का, समस्त नगरों का, समस्त परिवारों का झगड़ा ही समाप्त हो जाय। केवल यही मान लें कि सभी जीव, श्रीकृष्ण के पुत्र हैं। अतः परस्पर भाई भाई हैं। पुनः सभी जीवों के अंतःकरण में श्रीकृष्ण बैठे हैं। यथा;

ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेर्जुन तिष्ठति। (गीता)

अतएव किसी के प्रति भी हेय बुद्धि, निन्दनीय है। वर्तमान विश्व में इस सिद्धान्त पर राजनीतिज्ञों का ध्यान ही नहीं जाता अतएव अन्य भौतिक उपायों से शान्ति के स्थान पर क्रान्ति उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। केवल उपर्युक्त भावों के भरने से ही विश्वशान्ति संभव है...'

• सन्दर्भ ::: 'भगवत्तत्व' पत्रिका (यह पत्रिका 'जगदगुरु दिवस स्वर्ण जयंती समारोह' के रूप में वर्ष 2007 का विशेष संस्करण है.)

★★★
ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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