श्रीदुर्गा-तत्व तथा गोपियों के कात्यायनी-पूजन रहस्य पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की व्याख्या
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(शारदीय नवरात्रि की शुभकामनायें...)
भक्तियोगरस के परमाचार्य जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत श्री दुर्गा-तत्व तथा गोपियों के माँ कात्यायनी देवी पूजन सम्बन्धी प्रवचन, सभी भगवत्प्रेमपिपासु भावुक पाठक समुदाय को 'शारदीय नवरात्रि' की हार्दिक शुभकामनायें :::::::
जय जय जय जय दुर्गा मैया गोविन्द राधे।
कृपा करि मोहे कृष्ण प्रेम दिला दे।।
(स्वरचित दोहा)
प्रेम की अन्तिम आचार्या ब्रजांगनाएँ हैं, ब्रजगोपियाँ हैं जिनकी चरणधूलि ब्रम्हा, शंकर, सनकादिक, जनकादिक, उद्धवादिक समस्त परमहंस चाहते हैं। वृक्ष बन-बनकर ब्रज में उनकी चरणधूलि के लिये गये थे। वो ब्रजगोपियाँ प्रेम की आचार्या हैं। उनके प्रेम के आगे और किसी का प्रेम न हुआ था, न होगा। महाभाव कक्षा पर पहुँची हुई हैं ब्रजगोपियाँ। उसमें दो प्रकार की गोपियाँ थीं - एक ऊढ़ा एक अनूढ़ा। एक विवाहिता और एक कन्यायें। जो विवाहिता गोपियाँ थीं, उनका प्रेम अधिक उच्च कक्षा का था और नम्बर दो की कन्यायें थीं। विवाहिता का प्रेम परकीया भाव का प्रेम कहलाता है और कन्याओं का प्रेम स्वकीया भाव का प्रेम है।
स्वकीया माने जिसका और किसी से संबंध न हो और परकीया माने जिसका विवाह हो चुका है, पति है लेकिन चोरी चोरी प्यार करती है श्यामसुन्दर से। तो ब्रजांगनाओं का परकीया भाव का प्रेम सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ये दो प्रकार की गोपियाँ थीं और दो प्रकार की वेद ऋचायें भी थीं इनकी दासियाँ यानी विवाहिताओं की दासियाँ। ऐसी वेद की ऋचायें थीं जो इन्द्र, वरुण, कुबेरादि देवताओं की वाचिका थीं।
इन्द्रो जातो वसितस्य राजा, अग्निर्देवता, वायोर्देवता सूर्यो देवता
चन्द्रमा देवता वसवो रुद्रादेवता वृहस्पते देवतेन्द्र इन्द्रोदेवता।
इत्यादि तमाम वेद मंत्र हैं जो डायरेक्ट भगवान के लिये नहीं हैं, उनका नाम लिखा है इन्द्र वरुण कुबेरादि। और कुछ ऐसी वेद की ऋचायें हैं जो डायरेक्ट भगवान की वाचिका हैं;
सत्यंज्ञानमनंतम् ब्रम्ह।
इत्यादि। तो जो अनंत वाचिका हैं यानी अनूढ़ा हैं यानी कन्यायें हैं वे स्वकीया भाव की हैं और जो अन्य पूर्विका हैं, ऊढ़ा हैं, विवाहिता हैं, वे परकीया भाव की हैं। तो ये दोनों प्रकार की गोपियों के प्रेम सर्वोच्च प्रेम कहलाता है। उन दोनों ब्रजगोपियों ने दुर्गा की उपासना की थी;
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतम् देव पतिं मे कुरुते नमः।।
(भागवत 10-22-4)
कात्यायनी नाम है। दुर्गा के बहुत नाम हैं, बहुत रुप हैं, चार भुजा की दुर्गा, आठ भुजा की, हजार भुजा की। तो उन्हीं दुर्गा का एक रुप कात्यायनी देवी था, उसी को योगमाया कहते हैं। श्रीकृष्ण की बड़ी बहन है ये योगमाया जो यशोदा की पुत्री हैं। यशोदा की पुत्री हुई थी और देवकी के पुत्र हुये थे श्रीकृष्ण। तो श्रीकृष्ण को वसुदेव ले जाकर यशोदा के बगल में लिटा दिये थे और योगमाया को यानि यशोदा की पुत्री को उठा लाये थे और देवकी को दे दिया था। उसी को कंस ने चट्टान पर पटका था। लेकिन चट्टान पर गिरने के पहले ही वो आकाश को चली गईं और आठ भुजा से प्रकट होकर कंस को डाँटा, 'तुझे मारने वाला आ गया है तू मुझे क्या मारेगा?'
तो वो कात्यायनी देवी योगमाया दुर्गा हैं, उनकी उपासना किया था ब्रजगोपियों ने और उनसे वर माँगा था कि हमारे वर श्रीकृष्ण बनें।
पतिं मे कुरुते नमः।
(भागवत 10-22-4)
हे कात्यायनी! हम तुमको नमस्कार करते हैं। ऐसा वरदान दो कि श्रीकृष्ण हमारे पति बनें, प्रियतम बनें। और यही दुर्गा रामावतार में पार्वती के रुप में थीं जिनकी सीता ने, राम ने सबने इनकी उपासना की थी।
मनजाहि राच्यो मिलहिं सो वर सहज सुन्दर साँवरो।
और वहाँ वर दिया था पार्वती ने सीता को कि जाओ तुमको तुम्हारे पति राम मिलेंगे, वो पति बनेंगे। तो दुर्गा की उपासना करके हम उनसे वर माँगें, हमको श्रीकृष्ण प्रेम दे दो।
• सन्दर्भ : साधन साध्य पत्रिका, अक्टूबर 2009 अंक
★★★
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