गुरु की सेवा तथा सत्कर्म करते हुये व्यक्ति किस चीज के प्रति लापरवाह होने से बचे?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 429
★ 'सेवाभिमान' पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उदबोधन ::::
...सब कुछ त्यागो और त्यागने के अहंकार को भी त्यागो। गुरु सेवा करते हुए गुरु सेवाभिमान न लाओ। सेवाभिमान न आने पावे। तब वो असली त्यागी है।
एक राजा था उसको वैराग्य हुआ तो वो एक महात्मा के पास गया जंगल में। जैसे जिस पोज में वह बैठा हुआ था राजा उसी पोज में भाग पड़ा। महात्मा जी को प्रणाम किया और कहा कि हम आपके शिष्य बनना चाहते हैं। उन्होंने देखा। प्राचीन काल में महात्माओं की ऐसी परंपरा थी तपस्वियों की, उन्होंने कहा कि भाग यहां से, सब छोड़कर तब आ हमारे पास। उसने कहा कि महाराज! सब छोड़ आये। ए झूठ बोलता है।
अब वो चला गया बेचारा। उन्होंने जाकर स्वयं सोंचा, अरे राजा के भेष में ही मैं आ गया। महात्मा के पास मुकुट पहन कर के मैं आया, ये मुझसे गलती हो गई।
एक लंगोटी लगा कर के सब फेक-फाँक करके तब गया कि महाराज गलती हो गई। फिर देखा उन्होंने और कहा कि मैंने कहा ना कि सब छोड़ कर आ। तुमने सुना नहीं।
अब वो हैरान, सब कुछ तो छोड़ दिया मैंने! तो लँगोटी भी फेंक कर आया, दिगंबर। तो अबकी बार और जोर से डाँटा। उन्होने कहा कि देख अब अगर बिना छोड़े मेरे पास आया तो दंड दूँगा? तूने तीन बार आज्ञा का उल्लंघन किया। ऋषि मुनि तपस्वी का दंड क्या? कोई भक्ति मार्ग महापुरुष थे नहीं। तो राजा जाकर दूर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और सोचने लगा कि महात्मा जी क्या छोड़ने के लिए कह रहे हैं।
शरीर छोड़ा जा नहीं सकता और क्या है मेरे पास? रोने लगे। उन्होंने सोचा कि अब गुरुजी नहीं अपनाएंगे तो अब शरीर रखना भी बेकार है। संसार में कुछ नहीं है, ये तो समझ ही लिया और अब छोड़ भी आए अब दोबारा जाना भी गलत है और ये शरणागति नहीं स्वीकार कर रहे हैं हमारी। तो फिर अब देह ही छोड़ देते हैं।
तीन-चार दिन बाद गुरुजी उधर से निकले और उन्होंने कहा क्यों राजन! यहां कैसे बैठे हो? चुप। वो त्यागी जी! अब भी चुप। उन्होंने कहा कि हाँ। अच्छा आजा-आजा। अब तूने त्याग दिया सब कुछ। राजा होने का अभिमान भी त्यागने का मेरा आदेश था और त्यागने का अहंकार भी छोड़ो। 'मैंने सब छोड़ दिया है' - ये अहंकार भी छोड़ो। तब वो त्याग असली हुआ।
तो जो सत्कर्म करे कोई व्यक्ति उस सत्कर्म का अहंकार ना होने पावे उसको गुरु कृपा माने। उनकी कृपा से इतना हमने भगवन्नाम ले लिया, इतनी सेवा कर ली, वरना मुझसे होता भला?
एक भिखारी भी अगर मुझसे मांगता कभी पैसा तो मैंने कभी एक रूपया भी नहीं दिया लाइफ में, उन्होंने कैसे करा लिया हमसे? ये कृपा रियलाइज करना। सब कुछ त्यागो और त्यागने के अहंकार को भी त्यागो। और कुछ मत त्यागो और त्यागने का या आसक्ति का अहंकार छोड़ दो तो भी त्याग है। दोनों प्रकार का त्याग है...
• सन्दर्भ - 'गुरु सेवा' पुस्तक
★★★
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