जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा साधकों की साधना के लिये आठ स्मरणीय उपदेश/निर्देश या मार्गदर्शन!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 430
★ जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज निर्देशित साधना नियम
(1) सतर्क होकर साधना करने के लिए बैठो। यदि आलस्य आने लगे तो अपने आप खड़े हो जाओ। लेकिन शर्त यह है, चिन्तन श्याम सुंदर का ही हो।
(2) अपने इष्टदेव का गुणगान करो। ध्यान रखो, किसी का मन किसी के गुण पर ही रीझता है। जैसे संसार में कोई किसी के गुण पर ही रीझता है। (सुन्दर रूप भी एक गुण है), इसी प्रकार अधम-उधारनहार, पतित-पावन, भक्त-वत्सल आदि ठाकुर जी के अनन्त गुण हैं। इन गुणों का निरन्तर चिन्तन करें।
(3) केवल गुणगान करने से भी काम नहीं चलेगा। गान तो गवैये भी करते हैं, लेकिन उनको भगवत्प्राप्ति नहीं होती। अतएव गुणगान करते समय तदनुसार भाव भी लाओ। जैसे, हम वस्तुत: अधम हैं, पतित हैं, अनन्त जन्मों के किये अनन्त पापों की गठरी सिर पर लिये हैं और वे अकारण करुण, भक्त-वत्सल, पतित-पावन, अधम-उधारनहार आदि हैं।
(4) हमें कीर्तन में नींद क्यों आती है? क्योंकि हम अपने इष्टदेव का रूपध्यान नहीं करते, श्याम सुन्दर को प्यार नहीं करते। प्यार नहीं है, इसलिये गुणगान करते समय हृदय नहीं पिघलता व हम ऊँघने लगते हैं।
(5) नेत्र बन्द करके रूपध्यान करो, क्योंकि प्राथमिक अवस्था में आँखें खोलकर कीर्तन करने से दूसरे लोग आते जाते दिखाई देते हैं, श्यामसुन्दर नहीं। रूपध्यान की अत्यन्त आवश्यकता है। रूपध्यान नहीं करेंगे तो शारीरिक क्रिया का कोई फल नहीं मिलेगा।
(6) ठाकुर जी का जैसा भी चाहें, रूपध्यान बना लें। बाल्यावस्था का, किशोर रूप का, युवावस्था का। ठाकुर जी उसी रूप में मिल जायेंगे। लेकिन भगवान को पहले देखकर फिर रूपध्यान करने वाले नास्तिक बन जायेंगे, क्योंकि हमारी प्राकृत आँखें 'प्राकृत राम' को देखेंगी, भगवान राम को नहीं।
चिदानन्दमय देह तुम्हारी,
विगत विकार जान अधिकारी।
अत: अधिकारी बनने के पूर्व देखने की बात न करो।
(7) रूपध्यान करते हुए प्रिया प्रियतम के साथ जिस लीला में जाना चाहो, चले जाओ तथा उनके दिव्य मिलन व दर्शन के लिये अत्यन्त तड़पन पैदा करो। लाख आँसू बहाओ, लेकिन किसी भी आँसू को तब तक सच्चा न मानो, जब तक स्वयं श्यामसुन्दर आकर उसे अपने पीताम्बर से न पोंछ लें। इतनी व्याकुलता पैदा करो कि नेत्र और प्राणों में बाजी लग जाये। एक-एक पल युग के समान लगने लगे। लेकिन यदि प्राणवल्लभ न आयें तो निराशा न आने पाये, प्रेमास्पद में दोष बुद्धि न आने पाये।
(8) पूर्ण लाभ लेने हेतु साधना समय के अतिरिक्त समय में गुरु एवं ईश्वर को साक्षी व अन्तर्यामी रूप में नित्य अपने साथ अनुभव करते हुए, मौन नियम का पूर्ण पालन करो।
• सन्दर्भ - साधन साध्य एवं साधना नियम
★★★
(ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)*
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(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
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