सौभरि मुनि ने जब पचास शरीर धारण किये तो मन उनका एक ही रहा या मन भी पचास बन गये?
• जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 432
साधक का प्रश्न ::: सौभरि मुनि ने जब पचास शरीर धारण किये तो मन उनका एक ही रहा या मन भी पचास बन गये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: सब, शरीर मन सब। बिना मन के शरीर कैसे काम करेगा? फरक ये है कि एक तो योगमाया का शरीर है जैसे श्रीकृष्ण ने रास में बनाया या द्वारिका में बनाया या राम ने अनेक रूप धारण करके सबसे एक क्षण में मिल लिया।
क्षण मँह मिले सबहिं भगवाना।
तो ये तो योगमाया से दिव्य चिन्मय शरीर होता है भगवान् का। वह अनन्त शरीर बना लें। और योगी लोगों का शरीर जो है वह मायिक होता है लेकिन देखने में तो अलौकिक है ही है वह भी, क्योंकि हम लोग तो नहीं कर सकते ऐसा लेकिन वह शरीर नश्वर होता है। जितने दिन तक वह शरीर रहेगा योगशक्ति कम होती जायेगी।
एक योगी, एक महात्मा दोनों को प्यास लगी। तो कुएँ के पास गये लेकिन पानी निकालने का कोई जरिया नहीं था। तो योगी तो अपने योग के बल से चले गये नीचे और पानी पी आये। भक्त बाहर बैठा भगवान् का स्मरण कर रहा है। पानी ऊपर आ गया। उसने पी लिया। अब भक्त का कुछ घटा नहीं और योगी की उतनी देर की तपस्या खतम हो गयी। वह लिमिटेड पैसा है। जैसे - सोना है, चाँदी है वह लिमिटेड है और पारस अनलिमिटेड है। लोहे में छुआते जाओ सोना बनता जायेगा। पारस अपनी जगह रहेगा। बहुत बारीक बातें हैं।
• सन्दर्भ - प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 39
★★★
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