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  महापुरुष या महात्मा आदि किस प्रकार सदैव, सर्वत्र भगवान के दर्शन, श्रवण आदि करते हैं और हम ऐसा नहीं कर पाते हैं?
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 433

(भूमिका - विगत एक वर्षों से अधिक समय से प्रकाशित होती रहने वाली यह श्रृंखला पिछले तीन हफ्तों से किसी कारणवश अप्रकाशित रही, जिसका हमें अत्यंत खेद है। आप सभी ने जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत तत्वज्ञान का इस मंच पर पठन करके अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण, समझ और उन्नति में अवश्य ही लाभ प्राप्त किया होगा, ऐसा हमारा विश्वास है। पुनः इस श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुये आप सबकी सेवा में इसे प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा करते हैं कि पहले की ही भाँति आप सभी सुधी पाठकगण स्वयं तो लाभ लेंगे ही, अपने परिचितों को भी इस ओर प्रेरित करेंगे...)

....भगवान तो महानतम बुद्धिमानों की बुद्धि से भी परे हैं, क्योंकि वह इन्द्रिय मन बुद्धि का विषय ही नहीं है। वह इन्द्रिय मन बुद्धि का प्रेरक, धारक आदि है। साथ ही साथ वह दिव्य है। भगवान सृष्टि के प्रत्येक परमाणु में व्याप्त हैं किन्तु हमारी इन्द्रिय मन बुद्धि प्राकृत होने के कारण उसका अनुभव नहीं कर पाती। जैसे पीलिया के रोगी को सफेद फूल की सफेदी का अनुभव नहीं होता, उसी प्रकार हमारे अन्दर जो त्रिगुण (सात्विक, राजस, तामस) है, बस हमें उन्हीं का सर्वत्र अनुभव होता है। जब तक ये माया का रोग समाप्त नहीं होगा, तब तक न तो हम सर्वव्यापक भगवान का अनुभव कर सकते हैं और न अवतार लेकर आने वाले राम, कृष्ण आदि की अलौकिकता का ही अनुभव कर सकते हैं। इसलिए शास्त्र वेद कहते हैं कि इस माया के रोग को दूर करो। जिनका यह रोग दूर हो जाता है वो सदा सर्वत्र कण कण में अपने इष्टदेव का दर्शन करते हैं।

रवं वायुमग्निं सलिलं महीं च, ज्योतींषि सत्त्वानि दिशो दृमादीन।
सरितसमुद्रांश्च   हरे:   शरीरं,   यत   किंच   भूतं   प्रणमेदनन्यः।।
(भागवत 11-2-41)

अर्थात आकाश में, पृथ्वी में, वायु में, अग्नि में, जल में, नदी, नाले, पहाड़ किसी भी वस्तु पर उस महापुरुष की दृष्टि जाती है तो वह उनमें साक्षात अपने इष्टदेव का ही दर्शन करता है। इसके अलावा उसको कुछ दिखाई नहीं पड़ता, कितनी ही आँखें बंद करे, कितना ही कान में उँगली डाल लो फिर भी सर्वत्र उनकी मुरली ही सुनाई पड़ेगी, उनके शब्द सुनाई पड़ेंगे। साकार भगवान के उपासक को हर इन्द्रिय से उनका अनुभव होगा।

दोष हमारा है कि हम माया के परदे के कारण भगवान की सर्वव्यापकता का अनुभव नहीं कर पाते। अतएव किसी श्रोत्रिय ब्रम्हनिष्ठ महापुरुष की शरण ग्रहण कर, श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति की प्रैक्टिकल साधना करने से ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

• सन्दर्भ ::: जगदगुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित मासिक सूचना पत्र, अप्रैल 2010 अंक.

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- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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