क्यों जलाए जाते हैं आटे के दीये
हिंदू धर्म में पूजा आदि का अधिक महत्व है। तो वहीं पूजा करने के नियमों भी उतने ही खास माने जाते हैं। सनातन धर्म से संबंध रखने वाले लगभग लोग जानते ही होंगे कि पूजा में दीया जलाना आदि कितना महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू धर्म में कोई भी पर्व हो किसी में मिट्टी में या फिर आटे के दीये प्रज्जवलित करने की परंपरा रही है। आज हम जानते हैं कि आटे के दीये जलाने के पीछे कौन सा धार्मिक कारण छिपा है।
मान्यता है कि अन्य दीपकों की तुलना में आटे के दीप अधिक शुभ और पवित्र होता है। इस दीप को मां अन्नपूर्णा का आशीष स्वत: ही प्राप्त हो जाता है। माना जाता है कि देवी दुर्गा , पवनपुत्र हनुमान, देवों के देव महादेव भगवान शंकर, श्री हरि विष्णु, श्री राम, श्री कृष्ण के मंदिरों में आटे के दीपक जलाने से कामना की पूर्ति शीघ्र होती है। तो वहीं मुख्य रूप से तांत्रिक क्रियाओं में आटे के दीयों का उपयोग किया जाता है।
अगर किसी के जीवन में निम्न संबंधी कोई परेशानी हो तो उसके निवारण के लिए आटे के दीप जलाने चाहिए। जैसे- कर्ज से मुक्ति, शीघ्र विवाह, नौकरी, बीमारी, संतान प्राप्ति , खुद का घर, गृह कलह, पति-पत्नी में विवाद, जमीन जायदाद, कोर्ट कचहरी म ेंविजय, झूठे मुकदमे तथा घोर आर्थिक संकट आदि।
आटे के दीये प्रज्जवलित करने से पहले इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वे घटती और बढ़ती संख्या में हों। एक दीप से शुरूआत कर उस 11 तक ले जाया जाता है। उदाहरण के तौर पर जैसे संकल्प के पहले दिन 1 फिर 2, 3, ,4 , 5 और 11 तक दीप जलाने के बाद 10, 9, 8, 7 ऐसेफिर घटतेक्रम में दीप लगाए जाते हैं।
आटे में हल्दी मिला व गुंथ कर हाथों से उसे दीप का आकार दिया जाता है। फिर उसमें घी का तेल डाल कर बत्ती सुलगाई जाती है। ज्योतिष शास्त्री के अनुसार मन्नत पूरी होने के बाद एक साथ आटे के सारे संकल्पितदीये मंदिर में जाकर लगाने चाहिए। ध्यान रखें कि अगर दीप की संख्या पूरी हो ने से पहले ही कामना पूरी हो जाए तो क्रम को खंडित न करें। संकल्प के अनुसार ही सारे दीये जलाएं।
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