मैया से माखन माँगते छोटे से कृष्ण लला भूमि पर लोटकर रुदन करने लगते हैं!!
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज विरचित ब्रज-रस-साहित्य से
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज विरचित 'प्रेम-रस-मदिरा' ग्रन्थ में कुल 21 माधुरियाँ अर्थात खंड हैं। श्रीकृष्ण की मधुर, मनमोहक लीलाओं से अलंकृत अनेक पद आचार्यवर द्वारा इस ग्रन्थ में रचे गये हैं, जो कि विशुद्ध प्रेम रस से ओतप्रोत हैं। प्रस्तुत पद इस ग्रंथ की 'श्रीकृष्ण बाल लीला माधुरी' खण्ड से है, जिसमें बालकृष्ण अपनी मैया यशोदा जी से हठपूर्वक माखन-रोटी माँग रहे हैं। पद में उनकी अनेक भाव-भंगिमाओं का बड़ा सरस चित्रण हुआ है। आइये स्वयं पठन कर उस लीला में मानसिक रुप से प्रवेश करें ::::::
'प्रेम-रस-मदिरा' ग्रंथ में
श्री कृष्ण की बाल-लीला
मैया मोहिं, दै दे माखन रोटी।
पग पटकत झगरत झकझोरत, कह गहि यशुमति चोटी।
'आँ, आँ, करत मथनिया पकरत, जात धरणि पर लोटी।
लै निज गोद मातु दुलरावति, कहति 'बात यह खोटी'।
बिनु मुख धोये हौं नहिं दैहौं, नवनी रोटी मोटी।
खाय 'कृपालु' धोइहौं मुख कह, हरि पीताम्बर ओटी।
भावार्थ - छोटे से कन्हैया अपनी मैया से मक्खन रोटी मांग रहे हैं। अपना पैर पटकते जाते हैं एवं यशोदा मैया की चोटी को हाथ से पकड़ कर पीठ की ओर से झकझोरते हुए वात्सल्य प्रेमयुक्त झगडा कर रहे हैं। बाल स्वाभावानुसार आँ आँ करते हुए मथानी पकड़ लेते हैं। इतने पर भी जब मैया नहीं सुनती तो मान करते हुए पृथ्वी पर लोट जाते हैं। यह देखकर मैया बालकृष्ण को अपनी गोद में लेकर दुलार करती हुई प्यार से शिक्षा देती है कि पृथ्वी पर लोटना बुरी बात है। फिर मैया कहती है पहले मुंह धो आओ तब मक्खन रोटी दूंगी। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि श्यामसुंदर भोरेपन में पीताम्बर की ओट से मैया को यह उत्तर देते हैं कि प्रतिदिन की भांति मक्खन रोटी खाकर मुंह धो लूँगा।
० ग्रन्थ ::: प्रेम रस मदिरा (श्री कृष्णा-बाल लीला-माधुरी, पद संख्या 43)
० रचयिता ::: जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज
० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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