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 जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी की जननी माता भगवती के सौभाग्य की क्या समता या उपमा हो सकती है!!!

00 जगदगुरुत्तम अवतरण विशेष - माँ भगवती महोत्सव

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी का अवतरण 1922 में शरद-पूर्णिमा की महारात्रि में इलाहाबाद के निकट मनगढ़ नामक छोटे से ग्राम में उच्च ब्राम्हण कुल में हुआ। वे इस युग के परमाचार्य हैं, भक्तियोगरसावतार हैं, निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य हैं। एक अलौकिक व्यक्तित्व हैं, अपने शरणागतों के लिये उनका स्थान ऐसा है जैसे श्रीराधाकृष्ण तथा गुरु में कुछ भेद रह ही नहीं गया हो। ऐसी विभूति की जननी होने का सौभाग्य जिन्हें प्राप्त हो, उनके सौभाग्य की क्या तुलना हो सकती है। अखंड सौभाग्यवती माँ भगवती! जिनकी गोद में यह विभूति अवतरित हुई, आइये मन के भावराज्य में जाकर उनके श्रीचरणों में वन्दना के कुछ पुष्प अर्पित करें ::::::

हे भगवती मैया!!
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी की जननी होने
का परमातिपरम सौभाग्य प्राप्त करने वाली हे माता!

आपके चरणारविन्दों की बारम्बार वंदना..

आपकी गोद में शरद-पूर्णिमा की रात्रि में 'कृपा-शक्ति' का अवतरण हुआ है, इस युग के पंचम मूल जगदगुरुत्तम और भक्तियोग रस के अवतार श्री कृपालु महाप्रभु जी की जननी होने का परमातिपरम सौभाग्य आपको प्राप्त हुआ है। आपके ये लाड़ले सुत (पुत्र) उनके हम शरणागतों के लिये 'शरद-चंद्र' हैं। समस्त जगत आज उनके ज्ञान से आलोकित तथा प्रेम से सराबोर है। आज आपके द्वार पर उनके 'जन्म' का अनोखा महोत्सव दर्शनीय है!!

जैसा आनन्द ब्रम्ह श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में 'नन्द-महामहोत्सव' में बरसा था, वैसा ही आनंदोल्लास आज आपके आँगन में बरस रहा है। इस 'भगवती-महामहोत्सव' के हम भी साक्षी बनने की याचना करते हैं।

वेद और शास्त्रों ने न जाने कहाँ उन पुण्यों का वर्णन किया है, जिसका सुफल यह होता है कि ऐसा सौभाग्य प्राप्त हो। लगता तो ऐसा है कि वेदादि श्रुतियाँ भी स्वयं आपके सौभाग्य की स्तुति करती होंगी!! आपने तथा पूजनीय पिता (श्री लालता प्रसाद त्रिपाठी जी) ने अपने 'कृपालु' सुपुत्र का आनंद और मस्ती से भरा बालपन देखा और जीया है।

संस्मरण :::::: एक दिन गाँव के ही एक प्रसिद्ध पंडित श्री नागेश्वर जी आपके (भगवती मैया) पास आये थे। आपने 'कृपालु' की जन्मपत्री उनके सामने रखी और अपने सुपुत्र का भविष्य पूछा। वे बड़ी देर तक गणना करते रहे फिर बोले :

'माँ जी! इसके नक्षत्र तो कहते हैं, यह कोई देव-पुरुष है. संसार का उद्धार करने आया है...'

आज विश्वविदित है कि आपका वह 'लाड़ला' सारे जगत का पूज्यनीय बना और सारे जगत पर अपनी दया, कृपा और प्रेम की वृष्टि की. वह 'जगदगुरुत्तम' कहलाया!!

आपके सुपुत्र सदैव आपके आज्ञाकारी रहे। आपने अपने लाड़-दुलार से सदैव उनका पालन किया है। हे भगवती मैया! हम भी आपके पुत्र-पुत्रियाँ ही तो हैं, हम भी आपका दुलार पाने और आपके 'लाड़ले' की सेवा करने को व्याकुल हैं। हे माँ! हम पर कृपा करो, हमें अपनी चेरी (दासी) बना लो और अपने 'कृपालु' की सेवा करने का सौभाग्य दे दो, हम सदा-सदा आपके ऋणी बने रहेंगे!!

आज आपके द्वार पर हर्षोल्लास है!! बधाईयाँ गाई जा रही हैं। सब एक-दूसरे को 'बधाई हो, बधाई हो' कह-कहकर प्रसन्नता बाँट रहे हैं। क्या स्त्री, क्या पुरुष? आपके दुआर पर तो देवी-देवता भी वंदन कर रहे हैं। ऐसे दुआर पर हम विश्व के प्रेम-पिपासु व्याकुल जीव याचना करते हुये आपको बधाई देने आये हैं। टूटे-फूटे शब्दों में आपकी तथा आपके सुपुत्र की स्तुति गाने का प्रयास करते हुये हे माँ! आपके चरणों पर हम सभी बारम्बार बलिहारी जाते हैं। आपको बहुत सारी बधाई, हमारा हृदय आपके 'कृपालु' की कृपाओं का चिरयुगी ऋणी है, आभारी है, कृतज्ञ है।

उनके द्वारा प्रदत्त, प्रगटित प्रवचन-साहित्यों, स्मृतियों तथा प्रेम, भक्ति तथा कीर्ति मन्दिर जैसे दिव्योपहारों के दर्शन, सँग करते-करते निश्चय ही हम सभी अपने कल्याण के पथ पर अग्रसर करेंगे और उनकी दिव्य सन्निधि का अनुभव कर-करके श्यामा-श्याम की सेवा प्राप्त कर लेंगे।

समस्त विश्व-परिवार को 'माँ भगवती-महोत्सव' की अनंत शुभकामनायें!!

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