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  संत भी ऐसे मनुष्य को पाप से नहीं बचा सकते जो उनके कथनानुसार नहीं चलता

- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 103

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से नि:सृत 'शरणागति' तत्व पर 2 महत्वपूर्ण प्रवचन अंश ::::::::

(1) संत और भगवान दया के सिवाय और कुछ कर ही नहीं सकते। अपनी बुद्धि को संत की बुद्धि में जोड़ दो। बस पूर्ण शरणागति यही है। प्रत्येक अवस्था में दया कौन सी है, यह समझ में नहीं आता। कृपालु संत की कृपा का लाभ वही उठा सकता है जो उनकी कृपा के तत्व को समझता है। संत भी ऐसे मनुष्य को पाप से नहीं बचा सकते जो उनके कथनानुसार नहीं चलता।

(2) भटकना भगवद-शरणागति की आवश्यकता जानने तक ही है। पश्चात शरणागत जीव को अपने गुरु द्वारा बताये गये साधन और सिद्धान्त के सिवा अन्य कुछ भी पढऩा, सुनना एक विघ्न ही है और अनन्यता का विरोधी है क्योंकि शरणागति ही साधना और सिद्धि है। इसलिए शरणागति (समर्पण) मार्ग अन्य मार्गों से विलक्षण और विचित्र सा प्रतीत होता है। यहाँ बुद्धि का उपयोग सिर्फ शरणागति के द्वार तक पहुँचाने तक ही सीमित है। बाद में शरण्य की सत्ता मात्र रहती है।

0 सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, मार्च 1998 अंक
0 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

 

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