जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा दीपपर्व 'दीपावली' के संबंध में दिया गया संदेश
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 114
छत्तीसगढ़ आज डॉट कॉम के सभी सुधि पाठक जनों को दीपपर्व 'दीपावली' की हार्दिक शुभकामनायें। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम अपने अनुज श्रीलक्ष्मण जी तथा अपनी भार्या माता सीता जी के साथ अयोध्या वापस आते हैं, इस परम पुनीत मंगलमय क्षण की भी आप सभी को अनंत अनंत बधाई। आज के अंक में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'दीपावली' के संबंध में दिये गये व्याख्यान का कुछ अंश प्रकाशित किया गया है। आशा है आप सभी इससे कुछ प्रकाश प्राप्त कर अपने जीवन में अध्यात्म का दीपक प्रज्जवलित करेंगे :::::::
00 'दीपावली' पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रचे गये दोहे;
आज तो है दीपावली गोविंद राधे।
उर में प्रकाश करु तम को मिटा दे।।
आओ भरत शत्रुघन लछिमन राम।
लाओ जनकनंदनिहुँ सँग महँ राम।
00 'दीपावली' पर्व पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उपदेश :
अंश (1) 'दीपावली' शब्द का अर्थ है तेज पुंज, प्रकाश पुंज। तो संसार में भी आप लोग अनेक प्रकार के समूह उस दिन प्रकाशित करते हैं। अपनी अपनी रुचि के अनुसार लाभ उठाते हैं कुछ लोग मैटीरियल, कुछ लोग स्प्रिचुअल। किन्तु कुल मिलाकर साधारण से साधारण व्यक्ति भी दीपावली से यही अर्थ लगाता है कि अँधेरे में प्रकाश करना।
अंश (2) सुप्रीम पावर पूर्णतम पुरुषोत्तम ब्रम्ह श्रीकृष्ण ही वास्तविक नित्य अनंत मात्रा के प्रकाश हैं, शेष सब अन्धकार का स्वरुप है. जड़ स्वरुप हो, चाहे चेतन हो, चाहे कुछ भी हो।
अंश (3) वेद कहता है वह (भगवान) प्रकाश भी है, प्रकाशक भी है। मान लीजिये आपके सामने बल्व लगे हैं और आपसे पूछा जाय ये क्या है? आपका यही उत्तर होगा प्रकाश। लेकिन ये प्रकाशक भी है। ये इन सब वस्तुओं को, चेतन को, जड़ को सबको प्रकाशित कर रहा है। तो भगवान प्रकाश भी है और प्रकाशक भी है। भगवान से चेतन या जड़ सब प्रकाशित हो रहे हैं।
जगत प्रकाश्य प्रकाशक रामू। मायाधीश ज्ञान गुन धामू।।
चेतन जीव यह भी प्रकाश है, छोटा प्रकाश सही फिर भी इस पर माया का अंधकार है। ये अज्ञान का अंधकार कैसे आया और कैसे जायेगा। इस अंधकार को भगाने के लिये ही दीपावली मनाई जानी चाहिये।
अब लोग नहीं समझते इतनी गंभीरता को तो जैसे मैटीरियल लाइट करके अपना मनोविनोद कर लेते हैं। वैसे ही संसारी वस्तुओं को पाकर के लोग थोड़ी देर के लिए सात्विक सुख का अनुभव कर लेते हैं। लेकिन वास्तविक बात यह नहीं है। वास्तविक बात यह है कि जीव पर माया का अंधकार है उसमें भगवान् का प्रकाश लाना है. यह दीपावली का वास्तविक रहस्य है।
(प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, अक्टूबर 2008 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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