ब्रेकिंग न्यूज़

 जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी विरचित 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का दूसरा भाग, दोहा संख्या 6 से 10
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 124

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::

(भाग - 1 के दोहा संख्या 5 से आगे)

रसना की भक्ति ते ना बने कछु कामा।
शून्य का करोड़ गुना शून्य आवे बामा।।6।।

अर्थ ::: केवल रसना आदि इन्द्रियों की भक्ति से जीवन का वास्तविक लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा। शून्य में करोड़ का गुणा करने से शून्य ही प्राप्त होता है। तात्पर्य यह है कि अन्त:करण शुद्धि तो इष्ट में मन के संयोग से ही होगी. मन का योग ही वास्तविक भक्ति है। इन्द्रियाँ भी मन के साथ लगी रहें तो ठीक है परन्तु इन्द्रियों की क्रिया का महत्व नहीं है।

देह सम कीर्तन नाम गुन धामा।
प्रान समान रूप-ध्यान श्याम श्यामा।।7।।

अर्थ ::: भगवन्नाम, लीला, गुणादि का कीर्तन शरीर के समान है। श्यामा-श्याम का रुपध्यान प्राण के समान है। प्राण के बिना जिस प्रकार शरीर मृत है, उसी प्रकार रुपध्यान से रहित नाम, लीला, गुणादि का कीर्तन लाभप्रद नहीं होगा।

श्यामा श्याम नाम जपो चाहे आठु यामा।
बिना प्रेम रीझें नहिं कभू श्याम श्यामा।।8।।

अर्थ ::: श्यामा-श्याम प्रेम से ही रीझते हैं अत: प्रेम रहित नाम भले ही आठों याम क्यों न लिया जाय, श्यामा-श्याम की प्रसन्नता की प्राप्ति नहीं करा सकता।

प्रेम ही है सब साधन परिणामा।
प्रेम में भी भान रहे सदा निष्कामा।।9।।

अर्थ ::: समस्त साधनों का फल प्रेम ही है। 'ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पण्डित होय'। प्रेम में भी निष्कामता का सदा ध्यान रहे।

रिद्धि मिले सिद्धि मिले मिले मोक्षधामा।
सब हैं अज्ञान ज्ञान प्रेम श्याम श्यामा।।10।।

अर्थ ::: रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति या मोक्ष की प्राप्ति तो अज्ञान ही है। सच्चा ज्ञान तो वही है जिससे श्यामा-श्याम के प्रेम की प्राप्ति हो।

00 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::

ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दु:ख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढऩे पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।

00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

Related Post

Leave A Comment

Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).

Chhattisgarh Aaj

Chhattisgarh Aaj News

Today News

Today News Hindi

Latest News India

Today Breaking News Headlines News
the news in hindi
Latest News, Breaking News Today
breaking news in india today live, latest news today, india news, breaking news in india today in english