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  मनुष्य को अपनी कमाई का कितना परसेन्ट 'दान' करना चाहिये, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा समाधान

 

जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 135

प्रश्न ::: महाराज जी! आमदनी का कितना परसेन्ट दान करना चाहिये?

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर :::

परसेन्ट का सवाल नहीं है।

यावद् भ्रियेत जठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्।
अधिकं  योभिमन्येत  स  स्तेनो  दण्डमर्हति।।
(भागवत 7-14-8)

वेदव्यास ने कहा है कि जितने पैसे से तुम्हारा शरीर चल जाये। चल जाये। 'भ्रियेत' पेट भर जाये 'तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्', ये भगवान की सृष्टि है, भगवान का संसार है। अगर जैसे बैंक में किसी को बना दिया गया कोषाध्यक्ष तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो रुपया लेकर चला जाये अपने घर। उसका रुपया कुछ नहीं है। उसको तो पे (वेतन) मिलेगी केवल।

वो रुपया जो है, कैश जो है बैंक का वो तो बाँटने के लिये है जिसका जितना-जितना जमा है, पब्लिक का, उसको दो। उसको छुओ मत। ऐसे ही वेदशास्त्र कहता है कि जितने में तुम्हारे शरीर का, तुम्हारे परिवार के शरीर का पालन हो जाये। इच्छाओं की पूर्ति नहीं, पालन। जैसे एक मकान है। हमने एक अपने रहने के लिये मकान लिया और एक दस अरब का मकान बनाया। हमने एक मामूली कपड़ा पहन लिया हमारा काम चल रहा है शरीर का और एक वो सबसे महँगा वाला कपड़ा लिया। वो इच्छा की बात है। वो इच्छा वाली बात नहीं कह रहा है।

शास्त्र वेद कह रहा है कि जितने में तुम्हारा काम चल जाये। रोटी, दाल, चावल, तरकारी जो कुछ खाने का सामान आवश्यक है शरीर को वो दो, जो कपड़ा पहनना जरूरी है वो कपड़ा पहनो, मकान में रहो। ये जो रोटी, कपड़ा, मकान आदि का विषय है शरीर का, इसके बाद जो भी बचे दान करो। वो तो तुम्हारा नहीं है। मरने के बाद भी नहीं रहेगा। मरने के पहले ही उसको तुम अपना मत मानो, उसको दान करो, तो तुम्हें भगवत्कृपा का जो फल है वो मिलेगा। भगवान के निमित्त करो। उसको किसी सांसारिक स्वार्थ के लिये दान न करो। हम वहाँ दान कर दें तो मिनिस्टर खुश हो जायेगा। तो हमारी आमदनी बढ़ जायेगी। आजकल ये होता है न टाटा, बिरला आदि बड़े बड़े उद्योगपतियों के यहाँ दान बिजनेस हो गया है।

जहाँ तुमसे दान करने की बात करता है कोई महात्मा तो कहते हो कि ये तो पैसे के लोभी हैं, तुरन्त खोपड़ी में आप लोगों के आता है ये। अरे वो पैसे के लोभी नहीं हैं। तुमसे पैसे की जो आसक्ति है तुम्हारी वो निकलवाना चाहते हैं, कृपा है उनकी। जब कोई फोड़ा हो जाता है बच्चे को तो माँ डॉक्टर के पास ले जाती है, जोर से पकड़ती है उसके हाथ को, पैर को, हाँ डॉक्टर साहब चीर दो। वो चिल्लाता है कैसी माँ है ये, मारता है छोटा बच्चा माँ को। वो कहती है मार ले कुछ कर ले, गाली दे ले, लेकिन मैं तेरे इस रोग को समाप्त करवाऊंगी।

तो महात्मा लोग भी सब सह लेते हैं, इनके दुर्वचन, इनकी दुर्भावनायें, लेकिन पीछे लगे रहते हैं। अरे कुछ तो करेगा, चलो नथिंग से समथिंग अच्छा है। ये सब दान नहीं करेगा, थोड़ा तो करेगा। कुछ तो कल्याण हो। इतना तो हो जाय कि फिर ये मानव देह मिले।

00 प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
00 सन्दर्भ ::: 'द द द' पुस्तक (दान-विज्ञान पर आधारित)
00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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