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 लेपाक्षी मंदिर के हवा में झूलते पिलर्स का क्या है रहस्य ?
भारत मंदिरों का देश है और यहां हर मंदिर के चमत्कार की एक अलग ही कहानी है। देश में एक ऐसा मंदिर भी है जिसके पिलर हवा में झूल रहे हैं और मंदिर ज्यों का त्यों बरसों से खड़ा हुआ है। दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक लेपाक्षी मंदिर वैसे तो अपने वैभवशाली इतिहास के लिये प्रसिद्ध है, लेकिन मंदिर से जुड़ा एक चमत्कार आज भी लोगों के लिये चुनौती बना है। यह स्थान, दक्षिण भारत में तीन मंदिरों के कारण प्रसिद्ध है जो भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान विदर्भ को समर्पित है।  यही नहीं, यहां एक बड़ी नागलिंग प्रतिमा मंदिर परिसर में लगी हुई है, जो कि एक ही पत्थर से बनी हुई है।  यह भारत की सबसे बड़ी नागलिंग प्रतिमा के लिए जानी जाती है।
 आंध्र प्रदेश के एक छोटे से जिले अनंतपुर में स्थित है लेपाक्षी मंदिर, जो अपने हैंगिंग पिलर्स यानी कि हवा में झूलते हुए पिलर्स के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। बता दें कि इस दिव्य मंदिर के 70 से ज्यादा पिलर हैं जो बिना किसी सहारे के खड़े हैं और इस भव्य मंदिर को संभाले हुए हैं। अपनी इसी खूबी के लिए मंदिर को देखने के लिए भारी संख्या में टूरिस्ट आते हैं। यही नहीं, इस मंदिर में आने वाले भक्तों का मानना है कि इन हैंगिंग पिलर्स के नीचे से अपना कपड़ा निकालने से उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।  
 
 
इस मंदिर में इष्टदेव श्री वीरभद्र है। वीरभद्र, दक्ष यज्ञ के बाद अस्तित्व में आए भगवान शिव का एक क्रूर रूप है। इसके अलावा शिव के अन्य रूप अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर यहां भी मौजूद हैं। यहां देवी को भद्रकाली कहा जाता है। मंदिर 16 वीं सदी में बनाया गया और एक पत्थर की संरचना है। मंदिर विजयनगरी शैली में बनाया गया है।
  कहते हैं कि भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता अपने 14 साल के वनवास के दौरान यहां आए थे। जब माता सीता का अपहरण कर दुष्ट रावण अपने साथ लंका लेकर जा रहा था, तभी पक्षीराज जटायु ने माता सीता को बचाने के लिए रावण से युद्ध लडऩे लगे और जख्मी हो कर  इसी स्थान पर गिर गए थे। वहीं, जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता की तलाश करते-करते यहां पहुंचे तो वे- ले पाक्षी,  कहते हुए जटायु को अपने सीने से लगा लेते हैं। लेपाक्षी एक तेलुगु शब्द है, जिसका मतलब होता है -उठो पक्षी।
 मंदिर एक कछुआ के खोल की तरह बने एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसलिए यह कूर्म सैला बी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1583 में दो भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने कराया था जो  विजयनगर राजा के यहां काम करते थे। हालांकि पौराणिक मान्यता यह है की लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्थित विभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्तय ने करवाया था।
कहते हैं अंग्रेजों ने 16वीं सदी में बनी दिव्य मंदिर का रहस्य जानने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्हें नाकामयाबी हाथ लगी।  
 लेपाक्षी मंदिर जो अपने आप में काफी खास है इसकी मूर्ति काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी हुई है, जिसके शिवलिंग के ऊपर एक सात फन वाला नाग बैठा हुआ है। वहीं, दूसरी ओर मंदिर में रामपदम यानि कि मान्यता के मुताबिक श्रीराम के पांव के निशान भी वहां मौजूद हैं, जबकि कई लोगों का मानना यह है की यह माता सीता के पैरों के निशान हैं।
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