वर्ष के अंतिम दिन हमको क्या करना चाहिये, जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित दोहे के माध्यम से व्याख्या
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 155
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने निम्नांकित प्रवचन 31 दिसम्बर सन 2006 को अपने श्रीधाम बरसाना स्थित रँगीली महल आश्रम में दिया था, जिसमें उन्होंने मानव-जीवन के महत्व और उद्देश्य पर विशेष रूप में प्रकाश डाला था और गत वर्ष में हुई लापरवाहियों को दूर करते हुये नववर्ष में अधिकाधिक भगवद-चिन्तन का अभ्यास करने का संकल्प करने का आग्रह किया है। उन्होंने इस व्याख्यान के लिये एक दोहे की रचना की थी। नीचे वह दोहा तथा उनकी व्याख्या का आप सभी सुधि पाठक-जन लाभ लेवें...)
साल साल बीता जाय गोविन्द राधे।
अब तो हठीलो मन हरि में लगा दे।।
(स्वरचित दोहा)
आज इस वर्ष का अंतिम दिन है। कल सारे विश्व में हर्ष मनाया जायेगा। लेकिन ये गलत है क्योंकि हर्ष का विषय नहीं है। नया वर्ष आना ये हर्ष का विषय नहीं है, ये शोक का विषय है। जैसे आपके पास बैंक में एक लाख है, उसमें से पचास हजार खर्च हो गया तो आप खुशी नहीं मनाते। आप सोचते हैं, अरे! अब तो पचास ही रह गया, अब तो दो हजार रह गया, अब तो एक हजार रह गया। ऐसे ही ये मानव देह जो भगवान ने हमको अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये दिया है, हमने इसमें कितनी दूरी तय की। भगवान के पास कितना गये? कितनी उपासना की? उपासना माने पास जाना। भगवान के पास जाना, इसका शब्द है उपासना।
'उप' उपसर्ग है, 'आस' धातु से 'युच्' प्रत्यय होकर 'अन्' होकर, पास होकर उपासना शब्द बनता है। वो भगवान के पास कितना गये? जैसे किसी को ठण्ड लग रही है और सामने आग जल रही है तो वो जितना आग के पास जायेगा उतनी ही ठण्ड दूर होगी।
शीतं भयं तमोप्येति साधून् संसेवतस्तथा।
(भागवत 11-26-31)
तो हम भगवान के पास गये, कितने परसेन्ट गये, अब कितनी दूर हैं भगवान। संसार में कितनी दूर गये, ये सब सोचना चाहिये। हम नहीं सोचते। हम खुशी मनाते हैं। अच्छा हुआ, बीस साल निपट गया। अब पचास भी चला गया, अब अस्सी भी चला गया। अपने बेटों से, पोतों से हम लोग बड़े रुआब में कहते हैं, बेटा! हमारी क्या है, हमारी तो बीत गई। तुम अपनी फिकर करो। अरे क्या बीत गई? ये सोचा है क्या मानव देह जो बीत गया। अगर किसी को दस साल की जेल हो, और वो सोचे नौ साल बीत गया, अब साढ़े नौ साल बीत गया, अब कल छूटेंगे तो वो खुशी मनावे, ठीक है। तुम क्या खुशी मना रहे हो? मरने के बाद कहीं मुक्ति होगी क्या? इस चौरासी लाख की जेल से छुटकारा पा जाओगे क्या? ऐसा तो कुछ किया नहीं तुमने अभी और सोचा भी नहीं। फील किया होता तो, मरने के एक सेकण्ड पहले भी अगर फील किया होता, ठीक-ठीक फील किया होता, तो एक सेकण्ड पहले भी मन भगवान में लगा देते तो बात बन जाती।
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरं।
(गीता 8-6)
अंतिम समय में जैसा चिन्तन होगा वैसी ही गति मिलती है। तो हमें हर्ष नहीं मनाना है, हमको सोचना है, अपना निरीक्षण करना है, आत्म निरीक्षण। देखो! पॉलिटिक्स में सब पार्टियाँ इलैक्शन वगैरह के बाद अपनी अपनी पार्टी की गतिविधियों का विश्लेषण करती हैं, आत्म निरीक्षण करती हैं कि हम क्यों हारे? हमने ऐसा क्या गड़बड़ किया? हमारे द्वारा ऐसा क्या हुआ? क्या खामी थी, उसको हम ठीक करें। तो ऐसे ही हमको भी साल के अंत में बहुत अधिक आत्म-निरीक्षण करना चाहिये। हर महीने भी हमें एक बार करना चाहिये और हो सके तो डेली दो-तीन मिनट सोते समय सोचना चाहिये, आज हमने क्या किया? अच्छा क्या किया, बुरा क्या किया? संसार में मन कितना लगाया, भगवान में कितना लगाया।
अगर रोज सोचें तो अगले दिन गड़बड़ी कम होती जाय, फिर महीने में सोचें तो अगले महीने में और कम हो जाय लेकिन हम मरते मरते भी नहीं सोचते। निर्भय! हाँ, हमको मरना थोड़े ही है। अरे, अभी तो क्या हम नब्बे साल के ही हैं। अरे, क्या खयाल है तुम्हारा, सौ वर्ष। अच्छा चलो, मान लिया। दो सौ वर्ष के हो गये, अच्छा चलो मान लिया। उसके बाद क्या होगा?
तो ये जो आत्म निरीक्षण है उसमें आप पायेंगे कि हमने बहुत लापरवाही की, लेकिन अभी चांस है। एक डी. एम. थे तो वो अपना हाल बता रहे थे कि मैं एक कंपीटिशन में बैठा लिखने के लिये, तो सोचते सोचते नींद आ गई और एक घण्टे सोता रहा। एक घण्टे बाद जब नींद खुली, तो आधा घण्टा बचा था समय, तो जल्दी जल्दी लिखा और फेल हो गया। लेकिन आधा घण्टा तो कम से कम मिल गया उसको। हम तो मृत्यु के समय तक भी नहीं सोचते। तो कब बनायेंगे? इधर (संसार) का बनाने का तो बहुत सोचते हैं। हाँ, बेटे का बन जाय, बीवी का बन जाय, पोते का बन जाय, इसका भी बन जाय, उसका भी बन जाय, सब अरबपति हो जायें। ये बहुत सोचते हैं।
आत्मा का कमाने का मामला सोचो। तुम आत्मा हो, शरीर नहीं हो। शरीर को तो छोडऩा पड़ेगा, जबरदस्ती छुड़वाया जायेगा शरीर। इसलिये हर साल आत्म निरीक्षण करो और फील करो, और अगले साल की तैयारी करो कि अब की साल काम बना लेना है। क्या पता पूरा साल न मिले। छ: महीने ही मिले, एक महीना ही मिले।
क्षणभंगुर जीवन की कलिका,
कल प्रात को जाने खिली न खिली।
सबेरा हो न हो। आगरा के एक इंजीनियर साहब थे, जिन्होंने हमारा सत्संग भवन बनवाया है मनगढ़ का। वो रात में सोये और सबेरे नहीं उठे। किसी को मालूम ही नहीं हुआ। अरे भई, क्या हुआ? सोते सोते हार्ट फेल हो गया। तो ये तो काल है। समय आ गया तो काल आपको एक सेकण्ड का समय नहीं देगा। जाना होगा। कोई भी हो। 'राजा, रंक, फकीर' कोई भी हो। सबको जाना होगा। सिद्ध महापुरुष को भी जाना होगा। मायाबद्ध की कौन कहे?
कोई हँसते हुये जाय, कोई रोते हुये जाय। अरे, भगवान भी आते जाते हैं। ग्यारह हजार वर्ष जब पूरा हो गया राम का तो यमराज गया राम के पास कि महाराज! याद दिलाने आया हूँ आपको टाइम। भक्तों के प्यार में भूल गये हो, ग्यारह हजार वर्ष। तो आपका टाइम हो गया, आप जितने दिन को आये थे। अब आपकी इच्छा हो तो रहो वो मैं नहीं कहता।
इसलिये कल नया वर्ष होगा। उसकी खुशी तभी मनाओ, जब नये वर्ष में मन को जबरदस्ती भगवान में लगाओ। वो लगेगा नहीं, लगाना होगा। इस भरोसे से तुम बैठे रहे अनादिकाल से अब तक, लगेगा, लगेगा। क्यों लगेगा? तुम संसार में लगा रहे हो, अभ्यास कर रहे हो, संसार में लगाने का और लगे भगवान में? ऐसा कैसे? जिसमें लगाने का अभ्यास करोगे उसी में लगेगा न। बड़ा सुन्दर वेदव्यास ने एक श्लोक में कहा है,
विषयान् ध्यायतश्चित्तम् विषयेषु विषज्जते।
मामनुस्मरतश्चित्तम् मय्येव प्रविलीयते।।
(भागवत 11-14-27)
संसारी विषय में सुख का चिन्तन करोगे बार बार, तो उसमें अटैचमेन्ट हो जायेगा और मुझमें सुख का चिन्तन करोगे बार बार तो मुझमें अटैचमेन्ट हो जायेगा। बस चिन्तन करने का मामला है। जितना अधिक चिन्तन होगा, उतना अधिक अटैचमेन्ट होगा। वो चिन्तन हमें बढ़ाना है। बस इतनी सी बात है।
00 प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
00 सन्दर्भ ::: 'कृपालु भक्ति धारा' पुस्तक (भाग - 3)
00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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