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 जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 7)

 

जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 161

०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 7) ::::::

(1) भगवान और महापुरुष को न सुकृत छू सकता है, न दुष्कृत छू सकता है, यानी न पुण्य छू सकता है, न पाप छू सकता है। यह पाप पुण्य की जो कानून की किताब है, उन पर नहीं लागू होती है। वे धर्म और अधर्म से परे हैं।

(2) वस्तुतः हमारी बुद्धि संशययुक्त है। अतः अनंत बार भगवान के अवतार एवं सिद्ध संतों के मिलने पर भी हमने उन पर विश्वास नहीं किया। और जहाँ विश्वास किया, वे सब मायिक अज्ञानी थे, अतः हम 84-लाख में भटकते रहे।

(3) कोई व्यक्ति घोड़े पर चढ़ना चाहता है और उसके लिये प्रयत्न भी करता है। प्रयत्न में वह बार बार गिरता भी है लेकिन फिर भी अगर प्रयत्न को नहीं छोड़ता तो एक दिन वह घोड़ा सवार बन ही जाता है और जो प्रयत्न नहीं करता वह वहाँ का वहाँ ही रह जाता है। यह साधक और संसार वाले में फर्क है। साधक प्रयत्न करते करते एक दिन सुधर जायेगा।

(4) सांसारिक जीव सांसारिक सुख दुःख में सुखी दुःखी होता है जबकि भगवान अथवा महापुरुष प्रत्येक अवस्था में समान रूप से शांत और आनन्दित रहते हैं। वे सांसारिक सुख दुःख से उसी प्रकार अविचलित रहते हैं जिस प्रकार अनेक नदियों के प्रवेश करने पर भी समुद्र शान्त और अविचलित रहता है।

(5) तुम्हारी जिस वस्तु में सबसे अधिक आसक्ति हो, उसी को भगवान को अर्पण कर दो। इससे तुम्हारी आसक्ति कम हो जायेगी। आसक्ति ही भगवत क्षेत्र में बाधा डालती है। तुम्हारी आसक्ति किसमें है, यह जानने के लिये चिन्तन द्वारा पता लगाओ, तत्पश्चात उस वस्तु का समर्पण कर दो।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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