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  साधकों के लिये जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा दो महत्वपूर्ण आदेश/हिदायत, पहला आदेश शरीर और खान-पान के प्रति!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 168

(साधना मार्ग में कुछ सावधानियों का पालन अति आवश्यक होता है, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने साधक समुदाय को अनेक अवसरों पर बहुत सी सावधानियों के विषय में समझाया है। निम्न उद्धरण में भी उन्होंने एक अवसर पर इस ओर साधक समुदाय को संबोधित किया था। इसका दूसरा भाग कल प्रकाशित होगा..)

..पहली बात यह है कि आपको यह शरीर तो रखना है इसलिये इस अज्ञान को अपने पास न आने दीजिये कि यह शरीर अभी तो ठीक चल रहा है इसलिये इसका कोई मूल्य नहीं है। आम तौर से युवा लड़के युवा लड़कियों को हिदायत दी जा रही है क्योंकि ये लोग बहुत गड़बड़ करते हैं, खाने पीने में असावधानी बरतना शान समझते हैं। समय से नहीं खाया। एक रोटी खा ली तो एक ही सही और चार खा ली तो 4 ही सही। पूछिये ऐसा क्यों कर रहे हो? काम तो चल रहा है। यह जो काम चल रहा है यह कुछ ही सालों में विराट रूप धारण करके रोग बनके आयेगा, फिर कृपालु की बात याद आयेगी।

इसलिए पहले से ही होशियार हो जाओ। शरीर की जो आवश्यकतायें हैं उनको कायदे से पूरा करते रहो, इससे जो युवावस्था में बुढ़ापा आ जाता है वह न आयेगा। जब शरीर खराब हो जाता है तो न तो संसारी काम ही ठीक ढंग से हो पाता है और न स्प्रिचुअल साधना ही हो पाती है। इसलिये हमारे शास्त्र वेदों ने जहाँ संसार को मिथ्या कहा वहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अपने श्रीमुख से यह हिदायत भी की - 'युक्ताहार विहारस्य......'।

आहार विहार सब युक्त होना चाहिये, शरीर को जिन जिन तत्वों की आवश्यकता है वे सब आपके खाने में होने चाहिये विटामिन ए, बी, सी, डी सब होने चाहिये। जबान के लिये मत खाओ, शरीर के लिये खाओ। खाने के लिये जिन्दा मत रहो, जिन्दा रहने के लिये खाओ। यह पहला आदेश है, इसको स्वर्णाक्षरों में लिख लो। लेकिन अगर आपने कहा कि उससे क्या होता है तो चल जायेगा पता थोड़े ही दिनों में कि क्या होता है, नेचर किसी को बख्शेगी नहीं। दण्ड आपको भोगना ही पड़ेगा। शरीर के खाने पीने के मामले में आप उदासीन हैं, इसका मतलब है आप रसनेन्द्रिय की बीमारियों से उदासीन हैं। यह देह बड़ा भारी साधन है, भोग का भी और योग का भी, इससे उदासीन का मतलब है आप संसार और परमार्थ दोनों से उदासीन हैं। भले ही इस समय आप कहते रहे हैं कि चल रहा है, इसकी ओर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं है।

इस समय यह चल रहा है इसलिये कि मशीन नई है। जब पुर्जे भीतर से बिगड़ जायेंगे तो बीमारी का रूप धारण करके वे सामने आयेंगे। फिर केवल पछताना ही रह जायेगा। फिर इकोनॉमिक, फिजीकल और मेन्टल सब तरफ का आपका लॉस (हानि) होगा और हमेशा परेशान रहोगे। अतः खान-पान ठीक हो, इसकी सबसे पहली हिदायत है।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश, नवम्बर 1998
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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