श्यामसुन्दर हमारे हृदय में रहते हैं, पर हमें उसका लाभ क्यों नहीं होता है? जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज से इसका सुन्दर समाधान पढ़ें!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 171
(समस्त संत-शास्त्रों से सुनी गई यह बात कि भगवान सबके हृदय में निरंतर बैठे हैं, फिर भी जीव क्यों अज्ञान, दुःख और त्रास से व्यथित है, इससे कैसे छुटकारा प्राप्त होगा, पढिये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज की श्रीवाणी में...)
श्यामसुन्दर हमारे अन्तःकरण में नित्य विद्यमान रहते हैं, किन्तु फिर भी उनसे कोई लाभ नहीं। क्यों? ठीक यों, जैसे कि गाय स्वय हृष्ट-पुष्ट नहीं हो रही, यद्यपि कितना दूध भरे है अन्दर। ग्वाला प्रतिदिन दूध निकाल रहा है उसमें से, लेकिन अगर उसी का निकाला हुआ दूध गाय को फिर पिला दिया जाय तो गाय मोटी हो जायेगी। जब तक दूध निकालकर न पिलाया जाये, दूध उसको पुष्ट नहीं करता। निकलता यद्यपि उसी से ही है। इसी प्रकार आपके अन्तःकरण में श्यामसुन्दर बैठे हैं, लेकिन जब तक प्रेम रूपी शक्ति से आप उन्हें बाहर नहीं निकालते और उनका सेवन नहीं करते, तब तक आप मायामुक्त व प्रेमानन्द प्राप्ति के योग्य हो ही नहीं सकते, अधिकारी नहीं बन सकते। जब तक भगवान एवं गुरु के लिये हृदय नहीं जलेगा, तब तक हृदय पिघलेगा नहीं, अन्तःकरण शुद्ध नहीं होगा। बिना अन्तःकरण शुद्धि के कोई दिव्य सामान नहीं मिल सकता। साक्षात ईश्वर दर्शन करने पर भी गोलोक जाकर भी वहाँ से बैरंग ही लौटेंगे, क्योंकि श्यामसुन्दर 'एक्सरे' मशीन के समान हैं। जैसे आपके अन्तःकरण की 'पिक्चर' होगी, वे वैसे ही दिखाई देंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश, जुलाई 1996 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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