सारे संसार से जब दुःख पाता है, तब मनुष्य यह अनुभव करता है कि सुख संसार में नहीं, भगवान की शरण जाने में है!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 184
(स्वरचित दो दोहे की व्याख्या के माध्यम से आचार्य श्री एक महत्वपूर्ण रहस्य को समझा रहे हैं...)
जैसे जलयान खग गोविंद राधे।
उड़ि थकि जलयान आवे बता दे।।
जीव जग सुख नहिं गोविंद राधे।
पावे तब आवे हरि शरण बता दे।।
समुद्र के जहाज पर कोई पक्षी बैठा था और जहाज़ चल पड़ा और वो पचासों सैकड़ों मील चला गया जहाज़, तो पक्षी सोच रहा है मैं खाऊँ पीऊँ क्या? ये तो पानी ही पानी है चारों ओर, और पानी में खड़ा भी नहीं हो सकता और समुद्र में कब तक बैठा रहूँगा, ऐसे जहाज़ पे से उड़ा और बहुत दूर तक चला गया। जब थक गया, उसने कहा अब क्या करें? खड़े होने तक की जगह नहीं हैं, फिर आ कर के जहाज़ पर बैठ गया और कोई गति नहीं बेचारे की, चारों ओर पानी ही पानी है, कहीं स्थल नहीं, पेड़ नहीं, खाने-पीने का सामान नहीं।
उसी प्रकार ये जीव भगवान से विमुख होकर उड़ा, 84 लाख योनियों में घूमा, थक गया, कहीं सुख नहीं मिला तो फिर भगवान की शरण में गया कि संसार में कहीं सुख नहीं है, हमको धोखा था, अब समझ में आ गया। पहले संसार में सुख ढूंढता है, युवावस्था आयी ब्याह किया, बीबी पति हुआ यहाँ सुख मिल जायेगा, वहाँ भी चप्पल-जूते मिले, कोई सुख नहीं मिला। आगे बाल बच्चे हुए, इनसे सुख मिल जायेगा, खूब लाड़ प्यार किया बच्चों को, बड़े होकर वो भी नमस्ते करके चले गए, किसी ने साथ नहीं दिया, अब भगवान की शरण में आया।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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