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 साधक अपनी ओर देखे, अहंकार से बचे और अपने में दीनता और सहनशीलता के गुण लावे अन्यथा वह सदा नीचे गिरेगा!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 186

(गौरांग महाप्रभु जी के शिक्षाष्टक में दीनता और सहनशीलता साधक के दो महत्वपूर्ण गुण बताये गये। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज इन्हीं दो गुणों के संबंध में साधक समुदाय को संबोधित कर रहे हैं...)

तृण से भी दीन अरु गोविंद राधे।
तरु से सहिष्णु निज मन को बना दे।।
(स्वरचित दोहा)

तृण से बढ़कर दीन बनो। वृक्ष से बढ़कर सहिष्णु बनो, देखो घास के ऊपर पैर रख दो, दूब वगैरह तो वो नीचे हो जाती है और जब पैर हटा लो तो फिर अपना बेचारी नॉर्मल बन जाती है। पेड़ के ऊपर फल लगे हैं आप पत्थर मारते हैं तो फल नीचे गिरता है। पेड़ गुस्सा नहीं करता आपको फल देता है। आपके पत्थर का जवाब फल से, इतना सहनशील है वृक्ष।

स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।

वो स्वयं फल नहीं खाता अपना। आपको खिलाता है। ये सबक हम लोग याद नहीं करते। कुछ परवाह नहीं करते, वन पर्सेन्ट भी नहीं करते। सब के सब। अहंकार से भरे हम लोग। गुरु भी कोई बात कह दे अगर तुमने ऐसी गलती की। नहीं महाराज जी। तुरन्त जवाब तड़ाक से। जैसे चपत मार दो किसी को, ऐसे। गुरु को भी जवाब दे देते हो। तुम बेवकूफ हो जो हमको बता रहे हो दोषी। गलत। मैंने गलत काम कभी नहीं किया। मैं महापुरुषों से भी आगे हूँ।

इतना बिगड़ा हुआ है मन। एक वाक्य नहीं सह सकते गुरु का। तुरन्त जवाब। और फिर आप लोग जब ये अभ्यास ही नहीं करेंगे, तो कृपालु क्या करेंगे? पता नहीं किस बात का अहंकार है। शरीर गन्दा, मन पापात्मा से युक्त, क्या चीज है आप लोगों के पास, जिसका अहंकार हो। अरे अगर सरस्वती अहंकार करें बुद्धि देवी की, रावण अहंकार करे, इन्द्र अहंकार करे, कुबेर अहंकार करे, अग्नि, वायु अहंकार करे, तो चलो ठीक है। उनके पास इतनी बड़ी पॉवर है। तुम्हारे पास क्या है? ऐ हमको ऐसा कह दिया। ओह कह दिया। बना दिया तुमको क्या खराब?? कौन सी खराबी किसमें नहीं है। अकेले में सोचो कमरा बन्द करके। जब तक माया के अण्डर में है जीव तब तक कौन सी खराबी उसमें नहीं है। कामनायें नहीं है कि क्रोध नहीं है, कि लोभ नहीं है, कि मोह नहीं है, कौन सा दोष नहीं है? अनन्त दोष भरे हैं उसमें से एक दोष कोई कह दे, क्यों फीलिंग होती है? अपना सर्वनाश क्यों करता है साधक? क्योंकि फील करोगे तो मन गन्दा होगा। उससे हानि होगी शरीर को भी। क्रोध से। ये साइंस कहती है। तुम आत्मा हो।

रूप गोस्वामी ने एक ग्रन्थ लिखा 'भक्तिरसामृत सिन्धु' । जब जीव गोस्वामी गये उनसे मिलने तो एक काशी के विद्वान आये थे उन्होंने रूप गोस्वामी के एक श्लोक में गलती निकाली। तो जीव गोस्वामी को बड़ा क्रोध आया। और उन्होंने यमुना के किनारे चैलेंज करके, उसको बिठा कर दिन भर शास्त्रार्थ करके उसको हरा दिया कि हमारे गुरु जी के श्लोक में तुम गलती निकालोगे? और आकर रूप गोस्वामी से कहते हैं गुरुजी! एक ऐसा विद्वान आया था काशी का, आपके श्लोक में गलती निकाला। उससे आज बिना खाये पिये दिन भर भिड़ गया मैं और उसको परास्त करके तब आ रहा हूँ।

रूप गोस्वामी ने कहा जीव तुम भाग जाओ ब्रज के बाहर, तुम ब्रज में रहने लायक नहीं हो। तुमको क्रोध के ऊपर क्रोध करना चाहिये था, उसके ऊपर क्रोध क्यों किया? उसमें तो तुम्हारे श्रीकृष्ण बैठे हैं। उसको दु:ख दिया और हमसे आकर प्रशंसा कर रहे हो अपनी। तुम्हारा अहंकार बढ़ गया। ये और नुकसान हुआ तुम्हारा। हम रोज पढ़ाते हैं दीन बनो, दीन बनो। और तुम ये कमाई करके आये हो और गुरु जी के आगे अपनी प्रशंसा कर रहे हो कि आप बधाई दें । अरे श्लोक गलत है होने दे।

तो ये दीनता और सहनशीलता ये भक्ति का आधार है। इसको सोचो रियलाइज करो, बार बार सोचो, बार बार रियलाइज करो और अभ्यास करो रोज, आज मैंने कहाँ कहाँ क्रोध किया? चार जगह किया, कल नहीं होने देंगे। यही सोचेंगे कि सारे दोष तो हैं मेरे अन्दर। कौन सा दोष नहीं है। ये अगर हमको कहता है तुम चार सौ बीस हो, बिल्कुल ठीक कहता है। हम दिन भर क्या कर रहे हैं। चार सौ बीस तो कर रहे हैं कि भगवान हमारा है। उनको छोड़ करके संसार को अपना मान करके हम संसार में सुख ढूँढ रहे हैं। ये क्या नहीं है, क्या पाप नहीं है, ये सोचना चाहिये। सोचो, सोचो मानव देह बीता जा रहा है कब सोचोगे, कब करोगे?? और आप लोगों में से तो बहुत से लोग घर छोड़ कर आये हो, परमार्थ बनाने को और यहाँ भी वही हाल।

एक व्यक्ति को दोष बताया जाता है। तो वो सफाई देने आता है। नहीं, बात ये है कि... झूठ। और अनेक पाप एक पाप को बचाने के लिये करता है। भगवान के धाम में, गुरु के धाम में भी ऐसे पाप करना, ये क्यों? अरे फैक्ट को मान लो न। और तुम्हारे न मानने से तुमको कोई महापुरुष तो मान नहीं लेगा। अगर तुम जिद करके बहस करते हो अपना नुकसान तो करोगे ही और दूसरे का भी करोगे। उसने ऐसा किया। हर एक का यही लक्ष्य उसकी गलती है, मेरी नहीं है। मैं गलती नहीं कर सकता, गुरुजी आप बेवकूफ हैं। भगवान अन्दर बैठा है, वो भी बेवकूफ है। सब बेवकूफ हैं मैं बिल्कुल ठीक हूँ। अरे कहाँ चले जा रहे हो? ये दिन रात तुमको भगवान की कृपा से इतना तत्त्वज्ञान कराया जाता है और तुम तुले हो सर्वनाश करने में कि मरने के बाद तो हमको कुत्ते बिल्ली गधे की योनियों में जाना ही है। अनन्त कोटि जगद्गुरु मिलें, भगवान मिलें, हम नहीं सुनेंगे किसी की, अपना सुधार नहीं करेंगे। अभ्यास नहीं करेंगे ये जिद्द है हम लोगों की। इसको रियलाइज करो, सोचो, बार बार सोचो और अभ्यास करो, दस दिन में तुम अपने को शान्त महसूस करोगे, जब इन दोषों को छोड़ोगे।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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