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 मानव शरीर पाकर अपने परमार्थ की परवाह करो, लापरवाही न करो; जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा महत्वपूर्ण मार्गदर्शन!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन -  भाग 187

साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! ये काम, क्रोध, वाले दोष दूर क्यों नहीं हो रहे हैं, जबकि हम रोजाना प्रवचन सुनते हैं, कीर्तन करते हैं, इनमें न्यूनता क्यों नहीं आ पाती है, जैसे अभी आपने कहा, जरा सा किसी का धक्का लग गया, तो तुरन्त क्रोध हो जाता है, यह बात बिल्कुल सत्य है। तो महाराज जी! तेजी से अंतःकरण शुद्ध हो, वो स्थिति क्यों नहीं बन पा रही है, कैसे ठीक हो?

जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: मधुसूदन सरस्वती ने वृन्दावन में गोवर्धन की परिक्रमा किया और भगवान नहीं मिले। फिर किया, फिर किया, फिर किया और बहुत दिन करते रहे परिक्रमा, तब भगवान के दर्शन हुए, तो मधुसूदन ने पीठ कर लिया भगवान की तरफ, वो रूठ गए, कहने लगे तुम इतनी देर में क्यों आए?

तो भगवान ने दिखाया, उनके पापों का पहाड़ कि तुम्हारे इतने पाप थे कि ये सब जल जायँ, भस्म हो जायँ, तब तो मैं आऊँ। तो अनन्त जन्मों के पाप हमारे हैं, इतना गंदा अंत:करण है कि अगर कपड़ा थोड़ा मैला है तो एक बार साबुन लगाओ साफ हो गया और अगर धोया ही नहीं है कभी, 24 घण्टे ये भी फीलिंग नहीं है अभी कि भगवान हमारे अंत:करण में बैठा है, छोटी सी बात। भगवान हमारे अंत:करण में नित्य रहता है, ये सुना है, पढ़ा है? हाँ। और भगवान सर्वव्यापक है? हाँ। पर मानते हो? एक घण्टा भी नहीं मानते, 24 घण्टे में। तो साधना क्या कर रहे हो? जो बड़ा भारी फल मिल जाए तुमको। साधना गलत कर रहे हो, लापरवाही कर रहे हो, अपनी प्राइवेसी रख रहे हो। हम जो सोच रहे हैं, कोई नहीं जानता। वो बैठा-बैठा नोट कर रहा है, कहते हो कोई नहीं जानता।

अगर सही साधना लगातार करता रहे, करता रहे तो एक दिन लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा, असम्भव नहीं है, बड़े बड़े पापात्मा महापुरुष बने हैं, इतिहास साक्षी है। लेकिन थोड़ी साधना करो, बहुत बड़ा फल चाहो ऐसा नहीं हो सकता। अपने आपको धिक्कारो, अपनी कमी मानो। हम लैक्चर सुन लेते हैं, कीर्तन आरती कर लेते हैं, ये कोई साधना है?

उनके लिए आँसू बहाओ और हर समय, हर जगह महसूस करो, कि वो हमारे साथ हैं, ये साधना है, असली। अहंकार से युक्त हो करके मनुष्य कीर्तन में बैठा, तो आराम से मुँह से बोल रहा है, न रूपध्यान कर रहा है, न आँसू बहा रहा है। ये सब लापरवाही है। उसको पता नहीं है कि कल का दिन मिले या न मिले। रात को ही हार्टफेल हो जाए क्या पता? यही लापरवाही हमने हर मानव-देह में किया। अनन्त बार हमें मनुष्य का शरीर मिला, बहुत दुर्लभ है, फिर भी मिला। और हर मानव देह में हमने क्या किया? माँ, बाप में, सब में, पड़ोसी में, लग गए चौबीस घण्टे। एम. ए. करो, डी. लिट् करो, पी. एच. डी. किया, ये किया वो किया। अब क्या करें? अब सर्विस करो, सर्विस ढूँढ़ा जगह-जगह परेशान हुए, नहीं३ मिली, फिर मिल गई सर्विस अब क्या करो? अब ब्याह कर लो। उसके बाद 2-4-6 बच्चे हो गए, अब फिर उनका पालन-पोषण करो और उनके दुःख में दुःखी हो। बुढ़ापा आ गया, नाती पोते हो गए, अब उन्हीं का चिन्तन, मनन, एक्टिंग में चले गए मन्दिर अपने घर में ही 2 मिनट बैठ गए। ये क्या है?

ये तो जान बूझकर जैसे मनुष्य शरीर को समाप्त करना चाहते हैं और कहते हैं, अपने बेटे से, देखो बेटा मैं तो 70 साल का हो गया, मेरी तो बीत गई, तुम अपनी सोचो। मेरी तो बीत गई। क्या बीत गई, जब तुम मरोगे तो क्या रिकार्ड होगा? कहाँ जाओगे ? अरे जो होगा देखा जाएगा। देखा नहीं जाएगा। भोगा जाएगा। बड़ा कमाल दिखाया तुमने, दस-बीस कोठी बना ली, दस-बीस करोड़ कमा लिया, 10-20 बच्चे पैदा कर लिए। अरे, ये सब क्या है ? वो तो कुत्ते, बिल्ली भी करते हैं इसमें तुमने कौन सा कमाल किया। सब पशु-पक्षी पेट भरते हैं, अपना।

तो जिस काम को करने के लिए प्रतिज्ञा की थी माँ के पेट में, भगवान से कि महाराज हमें निकालो इस नरक से, हम आप ही का भजन करेंगे, वो भूल गए। और सब की देखा देखी, वह उधर भाग रहा है, तुम भी भागो। सब लोग भाग रहे हैं, मैटीरियल साइड में कि यहीं आनन्द है, एक लाख में, एक करोड़ में, एक अरब में, बस भागे जा रहे हैं, किसी से पूछ तो लेते कि अरबपति किस हाल में है, क्यों भई आपका क्या हाल है ? तो अगर बोलेगा वह ईमानदारी से तो कहेगा, कि दिन-रात टेंशन है, और नींद की गोली खाकर सोते हैं उसी सीट पर जाना चाहते हो? अरे शरीर चलाने के लिए भी कर्म करना है, ये सही है, लेकिन ये लिमिट में करो, रोटी दाल मिल जाय, बस।

परवाह होनी चाहिए, देखो बच्चों को, छ: आठ महीने तो मटरगशती करते हैं, पढ़ाई में, और जब परीक्षा को एक महीने रह गए तो सारी रात जागते हैं, पढ़ते हैं, अगर ऐसी पढ़ाई शुरू से ही किए होते तो टॉप करते। हम लोगों को कोई जब संसारी मुसीबत आ गई, बेटा सीरियस है, ये है, वो है- भगवान! हम मान गए तुम हो, अच्छा, अब कृपा करके इसको ठीक कर दो। ऐसे फिर भगवान कहते हैं- बेवकूफ बनाने के लिए हम ही मिले हैं, तुमको। हमेशा तो तुम लापरवाह रहे।

सोचो, बार बार सोचने से साधना होगी। बार-बार फील करना, अरे इतनी उम्र बीत गई अब अगर जिन्दा भी रहे तो बुढ़ापे में क्या करोगे? जल्दी करो। सबको पता है कि हम माया के अण्डर में हैं, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष सब भरा हुआ है, सबके अन्दर। लेकिन इन्हीं दोषों में से एक दोष किसी का कोई कह दे, आप जरा क्रोधी हैं, आप जरा लोभी हैं, आप जरा स्वार्थी हैं, आप जरा मक्कार हैं। सही बात तो कह रहा है। क्यों फील करते हो? तुमको तो पता है, हाँ यह बात ठीक कह रहा है। कोई व्यापारी है, उसे कहते हैं ये व्यापारी है, सेठ जी हैं, वह बुरा तो नहीं मानता। हमको कलैक्टर कहो। तुम जो कुछ हो, उसी में से तो कोई कुछ कहेगा। अरे वो बड़ा स्वार्थी है। अरे भला बताओ स्वार्थी तो- महापुरुष, भगवान संसार भर है, कौन स्वार्थी नहीं है। अपना असली हो या नकली हो, स्वार्थ सब स्वार्थ है।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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