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  क्या अजामिल को अपने बेटे का नाम नारायण कहकर मरने से भगवत्प्राप्ति हुई? जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 203

साधक का प्रश्न ::: क्या अजामिल को अपने बेटे का नाम नारायण कहकर मरने से भगवत्प्राप्ति हुई ?

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: कोई जीव भगवान का ध्यान करते हुये या नाम लेते हुये मरता है तो उसे भगवत्प्राप्ति होती है। उसमें ध्यान मुख्य है। 

(1) उपरोक्त सिद्धान्त के अनुसार अजामिल को भगवत्प्राप्ति
नहीं हो सकती क्योंकि उसने अपने बेटे का नाम लिया व बेटे का ही स्मरण किया।

(2) कोई भी जीव जिसने भगवत्प्राप्ति नहीं की है वो मरने के अंतिम समय में भगवान का नाम नहीं ले सकता है क्योंकि मरने में इतना अधिक कष्ट होता है कि वह नाम आदि ले ही नहीं सकता है। उदाहरणार्थ जब एक व्यक्ति को लाठी मारी जाती है, तब वह पहली लाठी बर्दाश्त कर लेता है। दूसरी लाठी लगने पर उसे चक्कर आने लगता है तथा तीसरी लाठी लगने पर वह बेहोश हो जाता है। मतलब जैसे-जैसे उसका कष्ट बढ़ता जाता है वह कष्ट सहने की सीमा समाप्त होकर बेहोश हो जाता है, यानी बेहोश होने से पूर्व तक जीव कष्ट सहन करने की शक्ति रखता है। अब जब कष्ट नहीं सह सका तब वह बेहोश हो जाता है, मरता नहीं। लेकिन जब पाँच-छः लाठी पड़ी तब वह सातवीं लाठी में मर गया। अर्थात यह सिद्ध हुआ कि मृत्यु के समय बेहोशी में ही नहीं बोल सकता तो मृत्यु समय किस प्रकार से भगवान या संसार का नाम उच्चारण कर सकता है। इसलिए गोस्वामी तुलसीदास ने बालि के प्रकरण में बालि के मुख से कहलाया है;

कोटि कोटि मुनि जतन कराहीं।
अंत राम कहि आवत नाहीं॥
         
यहाँ तुलसीदास जी ने मुनि के लिए लिखा है जो अपनी मन-बुद्धि पर पूर्ण कंट्रोल कर चुके होते हैं। सभी प्रकार की सिद्धियों का अधिकार होता है और माया उन पर हावी नहीं हो पाती, परन्तु भगवत्प्राप्ति नहीं हुई होती है। ऐसे लोग भी करोड़ों प्रयत्न करके भी अंत समय में भगवान का नाम नहीं ले पाते, तब कोई साधारण जीव किस प्रकार से अंत समय में भगवन का नाम ले सकता है?

हाँ केवल मृत्यु से पहले जिसको भगवत्प्राप्ति हो जाती है, वह जीव कष्ट का अनुभव नहीं करता एवं वह अपने शरीर को इच्छानुसार छोड़ता है। इसलिए वह भगवान का नाम अंत समय में ले सकता है। अजामिल को पूर्व में भगवत्प्राप्ति नहीं हुई थी। अतः वह अंत समय में भगवान का नाम तो क्या अपने बेटे का नाम भी नहीं ले सका होगा।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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