जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी विरचित 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का तेरहवाँ भाग, दोहा संख्या 61 से 65
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 214
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 12 के दोहा संख्या 60 से आगे)
याते मायाबद्ध ते न प्यार करो बामा।
हरि गुरु ते ही प्यार करो आठु यामा।।61।।
अर्थ ::: मायाधीन जीव से प्रेम करने का परिणाम यही निकलेगा कि मृत्यु के बाद उसी की प्राप्ति होगी। इसलिये जीव को एकमात्र हरि एवं गुरु से ही निरन्तर प्रेम-सम्बन्ध जोड़ना है।
भोरे बनि जाओ क्योंकि भोरीभारी श्यामा।
भोरीभारी को प्रिय भोरा उरधामा।।62।।
अर्थ ::: भोली भाली श्रीराधा को यदि रिझाना चाहते हो तो तुम्हें भी अत्यन्त भोला भाला बनना पड़ेगा। भोली भाली राधा भोले भाले हृदय में ही निवास करती हैं।
जल बिनु मीन ज्यों विकल कह बामा।
वैसे मन व्याकुल हो जाय बिनु श्यामा।।63।।
अर्थ ::: जिस प्रकार जल के बिना मछली जीवित नहीं रह सकती, उसी प्रकार यदि श्रीराधा के वियोग में मन छटपटाने लगे तब ही उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है।
रहा नाहिं जाये जब मिले बिनु श्यामा।
तब जानो प्रेमबीज, जामा उरधामा।।64।।
अर्थ ::: जब श्रीराधा के मिलन के बिना प्राण व्याकुल हो उठें तब समझो कि प्रेम बीज का वपन हृदय में हो चुका।
ऐसी चाह पैदा करो निज उरधामा।
जैसे करे दीप ते पतंग कह बामा।।65।।
अर्थ ::: अपने हृदय-भवन में श्री किशोरी जी के प्रति इतना प्रेम उत्पन्न करो जितना कि दीपक से पतंग करता है। पतंग दीप के रूप का पुजारी है। रूप दर्शन की ऐसी चाह पतंग में है कि वह दीपक की लौ पर अपने प्राण ही भेंट कर देता है।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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