जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 13)
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 215
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 13) ::::::
(1) राधा तत्त्व वो है जिसकी उपासना स्वयं श्री कृष्ण करते हैं, जिन श्रीकृष्ण की उपासना महाविष्णु आदि करते हैं, जिनके अंडर में अनंत कोटि ब्रह्माण्ड हैं। तो उस राधा तत्त्व के विषय में कोई शब्दों की गति नहीं, जिसके बारे में वेद (राधोपनिषद ने कहा) भी ठीक से नहीं जानते, वहाँ है वह राधा तत्त्व।
(2) मुक्ति भक्ति करने पर अपने आप आ जाती है, मिल जाती है, उसको माँगना नहीं पड़ता। कोई साधना नहीं करना है, उसके लिये। अरे! मोटी अकल की बात आप लोग याद कर लें । भक्ति के अंडर में भगवान्, भगवान् के अंडर में मुक्ति, मुक्ति के अंडर में ज्ञान, ज्ञान के अंडर में कर्म। कर्म का एण्ड होता है ज्ञान पर, ज्ञान का एण्ड होता है मोक्ष पर, मोक्ष के स्वामी भगवान् और भगवान् को दास बना लेती है, भक्ति। इतना बड़ा अन्तर है।
(3) ये हमारे मन का बनाया हुआ संसार ही मिथ्या है और यही गड़बड़ किये है। इसी मन को जो दस-बीस में हम आसक्त हैं, उनमें हम जो ममता किये हैं। क्यों? इसलिये कि हम समझते हैं कि उनमें हमारा सुख मिल जायेगा? बस इतनी सी बात है।
(4) हमें निरन्तर हरि गुरु का स्मरण करने का अभ्यास करना है। निरन्तर मन को मनमोहन में ही रखना है। यदि कभी मन संसार में चला भी जाय तो यह नहीं सोचना है कि हमसे साधना नहीं होगी। हमारे वश का यह साधना नहीं है आदि। अरे सोचो तो जब और कोई चारा ही नहीं है। और दुःख निवृत्ति एवं आनन्दप्राप्ति का स्वभाव बदल ही नहीं सकता तो निराशा महान् भूल है।
(5) शरीर की शरणागति मात्र से काम नहीं बनेगा कि उठाया खोपड़ी को और पैर पर रख दिया। ये सिर को पैर पर रखने का अभिप्राय तो ये है कि मैं अपना सब कुछ आपको अर्पित करता हूँ। अब अर्पित न करे, केवल सिर धर दे पैर के ऊपर, सुन ले सत्संग, गुरु के वाक्यों को और समझ में भी आ जाये, सिर भी हिला दे और प्रैक्टिकल अमल न करे, तो फिर वो सत्संग नहीं है। सत्संग का मतलब असली सत्, असली संग।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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