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महाशिवरात्रि 2021 पूजा का मुहूर्त, शुभ योग गृहस्थ और साधकों के लिए खास

महाशिवरात्रि 2021 वह पावन दिन है जिस दिन शिव भक्त अपने भोलेनाथ और देवी पार्वती की प्रसन्नता और उनका आशीर्वाद पाने के लिए व्रत रखकर इनकी पूजा करेंगे। पुराणों में ऐसी कथा मिलती है कि पूर्वजन्म में कुबेर ने अनजाने में ही महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ की उपासना कर ली थी जिससे उन्हें अगले जन्म में शिव भक्ति की प्राप्ति हुई और वह देवताओं के कोषाध्यक्ष बने।
महाशिवरात्रि क्यों होगी विशेष?
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरंभ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को क्यों कहते हैं?
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि महाशिवरात्रि महाशिवरात्रि के पावन दिन के बारे में कहा जाता है कि यूं तो साल में हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि आती है जिसे मास शिवरात्रि कहते हैं। लेकिन उत्तर भारतीय पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और गुजरात, महाराष्ट्र के पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी सबसे श्रेष्ठ है इसलिए इसे शिवरात्रि नहीं महाशिवरात्रि कहते हैं। इसकी वजह यह है कि इसी दिन प्रकृति को धारण करने वाली देवी पार्वती और पुरुष रूपी महादेव का गठबंधन यानी विवाह हुआ था।
महाशिवरात्रि पर रात का महत्व क्यों?
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि हिंदू धर्म में रात्रि कालीन विवाह मुहूर्त को उत्तम माना गया है इसी कारण भगवान शिव का विवाह भी देवी पार्वती से रात्रि के समय ही हुआ था। इसलिए उत्तर भारती पंचांग के अनुसार जिस दिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि मध्य रात्रि यानी निशीथ काल में होती है उसी दिन को महाशिवरात्रि का दिन माना जाता है।
12 तारीख को उदय कालीन चतुर्थी होने पर भी 11 मार्च को ही महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाएगी?
इस वर्ष 11 मार्च को दिन में 2 बजकर 40 मिनट से चतुर्दशी तिथि लगेगी जो मध्यरात्रि में भी रहेगी और 12 तारीख को दिन में 3 बजकर 3 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इसलिए 12 तारीख को उदय कालीन चतुर्थी होने पर भी 11 मार्च को ही महाशिवरात्रि मनाई जाएगी।चूँकि रात्रिकाल में 11 मार्च को ही चतुर्दशी है इस लिए निशीथ व्यापनी चतुर्दशी होने से 11 को ही शिवरात्रि मनाई जाएगी
महाशिवरात्रि पर शिवयोग कब तक ?
11 मार्च महाशिवरात्रि के दिन का पंचांग देखने से मालूम होता है कि इस दिन का आरंभ शिवयोग में होता है जिसे शिव आराधना के लिए शुभ माना गया है। शिवयोग में गुरुमंत्र और पूजन का संकल्प लेना भी शुभ कहा गया है। लेकिन शिवयोग 11 मार्च को अधिक समय तक नहीं रहेगा सुबह 9 बजकर 24 मिनट पर ही यह समाप्त हो जाएगा और सिद्ध योग आरंभ हो जाएगा।
महाशिवरात्रि पर सिद्ध योग का क्या लाभ ?
सिद्ध योग को मंत्र साधना, जप, ध्यान के लिए शुभ फलदायी माना जाता है। इस योग में किसी नई चीज को सीखने या काम को आरंभ करने के लिए श्रेष्ठ कहा गया है। ऐसे में सिद्ध योग में मध्य रात्रि में शिवजी के मंत्रों का जप उत्तम फलदायी होगा।
महाशिवरात्रि मुहूर्त की जानकारी
चतुर्दशी आरंभ 11 मार्च- 2 बजकर 40 मिनट
चतुर्दशी समाप्त 12 मार्च -3 बजकर 3 मिनट
निशीथ काल 11 मार्च मध्य रात्रि के बाद 12 बजकर 25 मिनट से 1 बजकर 12 मिनट तक।
शिवयोग 11 मार्च सुबह 9 बजकर 24 मिनट तक
सिद्ध योग 9 बजकर 25 मिनट से अगले दिन 8 बजकर 25 मिनट तक
धनिष्ठा नक्षत्र रात 9 बजकर 45 मिनट तक उपरांत शतभिषा नक्षत्र
पंचक आरंभ 11 मार्च सुबह 9 बजकर 21 मिनट से
पर महाशिवरात्रि में पंचक का कोई प्रभाव नहीं
महाशिवरात्रि पर पूजा का समय गृहस्थ और साधकों के लिए
महाशिवरात्रि के अवसर पर तंत्र, मंत्र साधना, तांत्रिक पूजा, रुद्राभिषेक करने के लिए 12 बजकर 25 मिनट से 1 बजकर 12 मिनट तक का समय श्रेष्ठ रहेगा।
सामान्य गृहस्थ को शुभ और मनोकामना पूर्ति के लिए सुबह और संध्या काल में शिव की आराधना करनी चाहिए। 2 बजककर 40 मिनट से चतुर्दशी लग जाने से दोपहर बाद शिवजी की पूजा का विशेष महत्व रहेगा।
महाशिवरात्रि पर पूजा का समय गृहस्थ और साधकों के लिए महाशिवरात्रि के अवसर पर तंत्र, मंत्र साधना, तांत्रिक पूजा, रुद्राभिषेक करने के लिए 12 बजकर 25 मिनट से 1 बजकर 12 मिनट तक का समय श्रेष्ठ रहेगा। सामान्य गृहस्थ को शुभ और मनोकामना पूर्ति के लिए सुबह और संध्या काल में शिव की आराधना करनी चाहिए। 2 बजककर 40 मिनट से चतुर्दशी लग जाने से दोपहर बाद शिवजी की पूजा का विशेष महत्व रहेगा।
पूजा में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
अगर आपने महाशिवरात्रि का व्रत रखा है तो इस बात का ध्यान रखें कि शिवजी की पूजा काले वस्?त्र पहनकर न करें। ऐसी मान्?यता है कि शिवरात्रि के नीले या फिर सफेद वस्?त्र पहनकर शिवजी की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
अक्षत बिल्कुल भी टूटे हुए नहीं होने चाहिए। मान्यता के अनुसार टूटा हुआ चावल अशुद्ध माना जाता है और इसे पूजा में अर्पित करना अशुभ होता है। अगर आपके घर में ऐसा चावल नहीं है तो बाजार से दूसरा चावल लाकर अर्पित करें और ऐसा न हो पाए तो टूटा हुआ चावल शिवजी को अर्पित न करें।
भगवान शिव की पूजा में एक बात का ध्यान रखें कि भूलकर भी नारियल के पानी के अभिषेक न करें। मान्यता है कि नारियल को मां लक्ष्?मी की प्रिय वस्तु माना गया है, इसलिए शिवजी की पूजा में नारियल का प्रयोग नहीं किया जाता है।
भगवान शिव की पूजा में भूलकर भी शंख का प्रयोग न करें। इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक असुर का वध किया था, जो भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए विष्णु जी की पूजा में शंख का इस्तेमाल किया जाता है जबकि शिवपूजन में शंख प्रयोग नहीं किया जाता है।
भगवान शिव की पूजा में चंदन का प्रयोग जरूर करना चाहिए। पूजा के वक्त मुख्य रूप ये शिवलिंग पर तीन उंगलियों से चंदन लगाया जाता है। उसके बाद शिवजी की पूजा करके अपने माथ पर भी त्रिपुंड बनाना चाहिए। ऐसा करने से माना जाता है कि शिवजी का आशीर्वाद प्राप्?त होता है। शिव पूजन में कुमकुम या सिन्दूर नहीं लगाना चाहिए। माता पार्वती को आप यह अर्पित कर सकते हैं।
 

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