मन संसार में जहाँ भी जाय, वहाँ पर श्रीकृष्ण को खड़ा करने का अभ्यास करने से मन श्रीकृष्ण में ही अनुरक्त होने लगेगा!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 232
(भूमिका - संसार में बाजीगर/मदारियों की कला का उदाहरण रखते हुये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज सरलतम रूप में समझा रहे हैं कि किस प्रकार मन की चंचलता को श्रीकृष्ण में स्थिर करना है...)
संसार में जैसे हर काम अभ्यास से होता है ऐसे भगवत्विषय में भी अभ्यास से, शान्ति से काम बनेगा। कहीं मन जाय, परेशान न हो, गुस्सा न करो - अरे! फिर मन में आ गयी बीबी, फिर मन में आ गया बाप। नहीं-नहीं, आने दो। आने दो। आ गया? हाँ, आ गया। उसी के बीच में खड़ा करो तुम, श्यामसुन्दर को और खूब देखो तुम माँ की आँख, बीबी की आँख, बेटी की आँख। तो थक जायगा मन।
देखो ! जब बन्दर को सिखाते हैं ये लोग, बाजीगर लोग, तो पहले सौ फुट की रस्सी में बांध देते हैं। तो बन्दर सौ फुट के आगे जाना चाहता है तो रस्सी लगती है बार-बार। तो वो कहता है, बेकार है। सौ फुट में ही कूदो। तब वो (रस्सी) पचास फुट की कर देता है। फिर दस फुट की, फिर जब एक फुट की रस्सी कर देता है तो बन्दर बैठ जाता है। खामखाँ दर्द होगा, क्या फायदा। ऐसे ही ये मन है। ये जहाँ भी जाय वहीं पर श्यामसुन्दर को खड़ा करो। बस, फिर तुम्हारा रूपध्यान पक्का हो जायगा। जहाँ भी जाओ, हर जगह ये फीलिंग रहेगी भीतर से कि श्यामसुन्दर हमारे साथ हैं। तो इस प्रकार अभ्यास करके हम गुरु की शरणागति में अन्तःकरण शुद्ध करें और हरि-गुरु इनके प्रति नामापराध न करें, सावधान रहें।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'जीव का लक्ष्य' प्रवचन पुस्तक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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