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 पद्म भूषण अरविंद पानगड़िया बने 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों की नहीं हुई घोषणा

 नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने रविवार को नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे अरविंद पानगड़िया को 16वें वित्त आयोग (एसएफसी) का अध्यक्ष नियुक्त किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक महीने पहले16वें वित्त आयोग का काम करने का क्षेत्र (टर्म आफ रेफरेंस) निर्धारित किया था।

 बहरहाल सरकार ने वित्त आयोग के सदस्यों की नियुक्ति नहीं की है, जिससे इस आयोग के कामकाज में और देरी हो सकती है। गजट अधिसूचना में कहा गया है, ‘सोलहवें वित्त आयोग के सदस्यों को अलग से अधिसूचित किया जाएगा।’
 बारहवें वित्त आयोग के सदस्य रहे डीके श्रीवास्तव ने कहा कि पानगड़िया इस काम के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं क्योंकि उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था की बहुत अच्छी समझ है और उन्होंने कई साल तक नीति आयोग का काम संभाला है।
 पानगड़िया ने जनवरी 2015 से लेकर अगस्त 2017 तक नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष के रूप में काम किया। यह पद कैबिनेट मंत्री के स्तर का होता है। इन वर्षों के दौरान उन्होंने भारत के जी20 के शेरपा के रूप में भी काम किया और जी20 की बातचीत में शामिल भारतीय दल का नेतृत्व किया।
 सदस्यों की नियुक्ति में देरी के बारे में श्रीवास्तव ने कहा कि वित्त आयोग अपनी रिपोर्ट पूरी करने में 2 से 2.5 साल का वक्त लेता है और ऐसे में यह जरूरी है कि नियुक्तियां समय से हों।
 श्रीवास्तव ने कहा कि 2024 में वैश्विक सुस्ती और गंभीर हो सकती है और विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश सुस्ती की गिरफ्त में आ सकते हैं, इससे एफएफसी के आकलन में चुनौतियां आ सकती हैं।
 पानगड़िया इस समय कोलंबिया विश्वविद्यालय में जगदीश भगवती प्रोफेसर आफ इंडियन पॉलिटिकल इकोनॉमी के रूप में काम कर रहे हैं। वह भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर लगातार टिप्पणी करते रहे हैं, जिनमें ऐसी टिप्पणियां भी शामिल हैं, जिनके बारे में उन्हें वित्त आयोग का कामकाज करते हुए मूर्त रूप देना है।
 पानगड़िया ने हाल में ओडिशा को एक उदाहरण के रूप में बताया था कि मतदाताओं ने नेता को किस तरह पुरस्कृत किया है, जिन्होंने लगातार उच्च आर्थिक वृद्धि दी है। वहीं उन्होंने राजस्थान सरकार के पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने और स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक लाने के फैसले की आलोचना करते हुए इसे ‘मतदाताओं को आकर्षित करने के खतरनाक गैर-जिम्मेदाराना तरीकों’ का उदाहरण बताया था।
 वित्त आयोग संवैधानिक निकाय है। इसका गठन हर 5 साल पर किया जाता है। यह केंद्र व राज्यों के बीच कर विभाजन का फॉर्मूला तैयार करता है। साथ ही राज्यों और स्थानीय निकायों के बीच कर विभाजन का भी तौर तरीका तय करता है। इस समय भारत में केंद्र का 41 प्रतिशत कर राज्यों के साथ साझा किया जाता है, जिसकी सिफारिश 15वें वित्त आयोग ने की थी।
 अब तक की परंपरा से हटते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 नवंबर को अध्यक्ष व सदस्यों के नाम का खुलासा किए बगैर वित्त आयोग के काम करने के क्षेत्र को मंजूरी दे दी थी। वित्त आयोग को अपनी रिपोर्ट 31 अक्टूबर, 2025 को देनी होगी, जिसमें 1 अप्रैल, 2026 से प्रभावी 5 साल की अवधि शामिल होगी।
 एनके सिंह की अध्यक्षता वाले पंद्रहवें वित्त आयोग की वैधता 31 मार्च, 2026 तक है। सरकारी अधिकारी ऋत्विक रंजनम पांडेय को आयोग का सचिव बनाया गया है।
 सरकार ने वित्त आयोग के काम करने का क्षेत्र सिर्फ संवैधानिक रूप से अनिवार्य प्रावधानों तक सीमित कर दिया है, जिसमें केंद्र और राज्यों और राज्यों के भीतर कर का वितरण, भारत की संचित निधि से राज्यों को राजस्व सहायता अनुदान को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत और राज्यों में पंचायतों व नगर पालिकाओं के धन जुटाने के पूरक संसाधनों के बारे में कदम उठाने जैसी सिफारिशें शामिल है।
 अग्रणी व्यापार अर्थशास्त्री पानगड़िया अक्सर सरकार की संरक्षणवादी आयात छूट नीतियों की आलोचना करते रहे हैं। हालांकि वह नरेंद्र मोदी सरकार की व्यापक आर्थिक नीतियों के समर्थक रहे हैं।
 पानगड़िया ने इसके पहले एशियाई विकास बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में काम किया है और उन्होंने विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अंकटाड में भी विभिन्न पदों पर काम किया है।
 उन्होंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि ली है। मार्च 2012 में भारत सरकार ने पानगड़िया को पद्म भूषण से सम्मानित किया था, जो किसी भी क्षेत्र में काम करने पर दिया जाने वाला देश का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है।

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