अमेरिकी शुल्क के प्रतिकूल असर की घरेलू मांग के जरिये भरपाई करने में मदद करेंगे जीएसटी सुधार: सीईए
नयी दिल्ली. मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी. अनंत नागेश्वरन ने बुधवार को कहा कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) सुधार अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50 प्रतिशत के भारी शुल्क के कुछ प्रतिकूल प्रभावों की भरपाई करने में मदद करेंगे और चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि पर इसका शुद्ध प्रभाव 0.2-0.3 प्रतिशत होगा। उन्होंने कहा कि सकारात्मक पक्ष यह है कि जीएसटी सुधार अमेरिकी निर्यात मांग में कमी की घरेलू मांग के जरिये भरपाई करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। जीएसटी परिषद ने पिछले सप्ताह पांच प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत की चार-स्लैब की जीएसटी संरचना को दो स्लैब पांच प्रतिशत और 18 प्रतिशत कर दिया है। परिषद ने अहितकर और विलासिता की वस्तुओं पर 40 प्रतिशत की एक नई जीएसटी दर भी लागू की है। 22 सितंबर को नवरात्रि के पहले दिन से जीएसटी में बदलाव लागू होने पर साबुन से लेकर कार, शैंपू से लेकर ट्रैक्टर और एयर कंडीशनर तक लगभग 400 उत्पादों की कीमतें कम हो जाएंगी। ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (एआईएमए) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि जीएसटी सुधार घरेलू मांग पैदा करके दूसरे और तीसरे दौर के प्रभावों को कम करने में मदद करेंगे और इस प्रकार पूंजी निर्माण के रास्ते में आने वाली अनिश्चितता को दूर करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि आपको यह याद रखना चाहिए कि चालू वित्त वर्ष के पहले पांच माह में, अमेरिका को वस्तुओं का निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में लगभग आधा हो चुका है। दूसरे शब्दों में, इस वित्त वर्ष में, प्रभाव अपेक्षाकृत सीमित हो सकता है। लेकिन अधिक महत्वपूर्ण बात शुल्क की अनिश्चितता के दूसरे और तीसरे दौर के प्रभाव हैं, यदि वे लंबे समय तक रहते हैं तो।'' उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि शुल्क की स्थिति दीर्घकालिक होने के बजाय क्षणिक और अल्पकालिक साबित होगी। नागेश्वरन ने कहा, ‘‘लेकिन अगर यह हमारी अपेक्षा से ज़्यादा समय तक चलता है, खासकर 25 प्रतिशत का दंडात्मक शुल्क, तो दूसरे और तीसरे दौर के प्रभाव और भी स्पष्ट हो जाएंगे, यानी निवेश, पूंजी निर्माण और अर्थव्यवस्था में समग्र धारणा के संबंध में अनिश्चितता।'' हालांकि, नागेश्वरन ने कहा कि जीएसटी सुधार न केवल घरेलू खपत को बढ़ावा देंगे, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह दूसरे और तीसरे दौर के शुल्क प्रभावों का प्रतिकारक भी होगा। भारत पर 50 प्रतिशत के भारी शुल्क में रूस से कच्चा तेल खरीदने पर 25 प्रतिशत का जुर्माना भी शामिल है। 25 प्रतिशत का जुर्माना 27 अगस्त से लागू हुआ। गत सात अगस्त को, डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने रूस से भारत के लगातार तेल आयात और लंबे समय से चली आ रही व्यापार बाधाओं का हवाला देते हुए भारतीय वस्तुओं पर 25 प्रतिशत शुल्क लागू किया था। उच्च आयात शुल्क के कारण प्रभावित क्षेत्रों में कपड़ा/वस्त्र, रत्न एवं आभूषण, झींगा, चमड़ा और जूते, पशु उत्पाद, रसायन और विद्युत एवं यांत्रिक मशीनरी जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र शामिल हैं। फार्मा, ऊर्जा उत्पाद और इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे क्षेत्र इन व्यापक शुल्कों के दायरे से बाहर हैं।
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के 437.42 अरब डॉलर मूल्य के वस्तु निर्यात में अमेरिका का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा था। 2021-22 से अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है। 2024-25 में, वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार 131.8 अरब अमेरिकी डॉलर (86.5 अरब अमेरिकी डॉलर निर्यात और 45.3 अरब अमेरिकी डॉलर आयात) रहा। घरेलू अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधारों पर, नागेश्वरन ने कहा कि केंद्र द्वारा कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की गई हैं, लेकिन ये पहल राज्य-स्तरीय विषय हैं जिन्हें राज्य स्तर पर आगे बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि कृषि क्षेत्र में अब भी भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में कम से कम 0.5-0.7 प्रतिशत और योगदान देने की गुंजाइश है और यह किसानों को अपनी उपज किसी को भी, कहीं भी, कभी भी बेचने का अधिकार देने से संभव है। उन्होंने कहा, ‘‘यह वह आजादी है जिसकी किसानों को कृषि सब्सिडी से कहीं ज़्यादा ज़रूरत है।''
उन्होंने सुझाव दिया कि किसानों को कुछ बीमा की भी जरूरत है, क्योंकि उनका व्यवसाय स्वाभाविक रूप से प्राकृतिक आपदाओं और अनिश्चितताओं से ग्रस्त है। उन्होंने आगे कहा, ‘‘किसानों को सशक्त बनाना और भारत या विदेश से बाजार के संकेतों का लाभ उठाने की उनकी क्षमता पर अंकुश न लगाना, कृषि में उत्पादकता को बढ़ावा देगा और जीडीपी वृद्धि में योगदान देगा।'' यह पूछे जाने पर कि क्या भारत वैश्विक व्यापार के लिए डॉलर के विकल्प के रूप में कोई वैकल्पिक मुद्रा खोजने की किसी पहल का हिस्सा है, नागेश्वरन ने कहा कि इस संबंध में कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। ‘‘नहीं, बिल्कुल नहीं। भारत ऐसी किसी भी पहल का हिस्सा नहीं है।''
हालांकि, पिछले साल, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में, भारत और अन्य ब्रिक्स देशों ने स्थानीय मुद्रा में सीमापार भुगतान के निपटान पर विचार किया था और एक विशेष ब्रिक्स मुद्रा के निर्माण पर सहमति व्यक्त की थी।
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