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 भारतीय वैज्ञानिकों ने गर्भ के अंदर 'जेनेटिक स्विच' का पता लगाया, गर्भावस्था में हो सकता मददगार
नयी दिल्ली. गर्भावस्था की शुरुआत को समझने के लिए किए गए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक अध्ययन के दौरान एक “जेनेटिक स्विच” के बारे में पता चला है, जिसकी मदद से भ्रूण गर्भाशय की झिल्ली पर चिपक जाता है और फिर गर्भधारण संभव होता है। गर्भावस्था की शुरुआत के लिए भ्रूण का पहले महिला के गर्भाशय की झिल्ली से जुड़ना और उसमें समाहित होना आवश्यक होता है। लेकिन यह प्रक्रिया कैसे होती है, यह एक रहस्य बना हुआ था। अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘सेल डेथ डिस्कवरी' में प्रकाशित अध्ययन में भ्रूण प्रतिरोपण को नियंत्रित करने वाले एक मौलिक “जैविक स्विच” का खुलासा किया है। यह अध्ययन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य संस्थान (आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच), मुंबई; बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), वाराणसी, और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएस), बेंगलुरु के बीच सहयोग से किया गया। इस अध्ययन आणविक जीवविज्ञान, जीनोमिक्स और गणितीय मॉडलिंग के विशेषज्ञों ने सहयोग किया। आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच के वैज्ञानिक और अध्ययन के लेखक डॉ. दीपक मोदी ने बताया कि इससे पता चला कि दो जीन हॉक्सा10 और ट्विस्ट2 सही समय पर गर्भाशय की झिल्ली पर एक छोटी सी जगह को खोलने या बंद करने का काम करते हैं। उन्होंने कहा कि गर्भाशय की आंतरिक परत किसी किले की दीवार की तरह होती है। उन्होंने कहा कि यह मजबूत, सुरक्षात्मक और सामान्यतः किसी भी चीज के प्रवेश को रोकने के लिए बंद हो जाती है। इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका नैन्सी अशरी ने बताया कि प्रतिरोपण की प्रक्रिया के सफल होने के लिए, इस परत को भ्रूण के आगमन के स्थान पर एक छोटा सा द्वार खोलना होता है। अध्ययन में पता चला कि हॉक्सा 10 जीन गर्भाशय की झिल्ली को बंद और सुरक्षित रखता है।
आईआईएस, बेंगलुरु के डॉ. मोहित जॉली ने कहा, “लेकिन जब भ्रूण झिल्ली में प्रवेश कर जाता है, तो हॉक्सा10 उस स्थान पर अस्थायी रूप से बंद हो जाता है। इस छोटे 'स्विच-ऑफ' के बाद एक अन्य जीन ट्विस्ट2 का काम आता है। ट्विस्ट2 की सक्रियता के कारण गर्भाशय कोशिकाएं नरम और लचीली बनकर एक छेद खोलती हैं ताकि कोशिकाएं अपनी जगह से थोड़ी हिलकर भ्रूण को अंदर जाने दें।” अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि इस प्रक्रिया के सफलतापूर्वक संपन्न होने के बाद गर्भवास्था शुरू हो जाती है।
 इस प्रक्रिया का अध्ययन चूहों, बंदरों और मानव कोशिकाओं में किया गया, और पाया गया कि यह हॉक्सा10 और ट्विस्ट2 स्विच सभी प्रजातियों में होता है। आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच की निदेशक डॉ. गीतांजलि सचदेवा ने कहा, “इस जैविक बदलाव को समझने से यह स्पष्ट होगा कि कुछ महिलाओं को भ्रूण के स्वस्थ होने के बावजूद बार-बार गर्भधारण करने में क्यों विफल होना पड़ता है।” डॉ. सचदेवा ने कहा कि यदि गर्भाशय की झिल्ली बहुत कम खुलती है, तो भ्रूण अंदर नहीं जा सकता; यदि यह बहुत अधिक खुलती है, तो गर्भावस्था कायम नहीं रह सकती। उन्होंने कहा कि हॉक्सा10 और ट्विस्ट2 के बीच संतुलन को नियंत्रित करने से भविष्य में आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) की सफलता दर में सुधार हो सकता है।

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