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  क्लौडिया गोल्डिन को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार
 नई दिल्ली: अमेरिका की प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) में इकनॉमिक्स की प्रोफेसर क्लौडिया गोल्डिन (Claudia Goldin) को इस साल अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। गोल्डिन को दुनिया की दस सबसे प्रभावशाली महिला अर्थशास्त्रियों में से एक माना जाता है। उन्हें खासकर जेंडर इकनॉमिक्स को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए जाना जाता है। अमेरिका की इकॉनमी में महिलाओं की भूमिका पर उनका शोध काफी चर्चित रहा था। क्लौडिया ने साथ ही पुरुषों और महिलाओं के वेतन में अंतर के कारणों को समझने के लिए काफी शोध किया है।
 क्लौडिया का जन्म 1946 में न्यूयॉर्क में हुआ था। उन्होंने माइक्रोबायोलॉजी की पढ़ाई करने के लिए कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया लेकिन इतिहास और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने 1972 में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो से इंडस्ट्रियल और लेबर इकनॉमिक्स में डॉक्ट्रेट किया। 1970 के दशक में जब अमेरिका में महिला अधिकारों के लिए आंदोलन शुरू हुआ तो क्लौडिया को अपना मकसद मिल गया। उन्होंने अमेरिका की इकॉनमी में महिलाओं की हिस्सेदारी का अध्ययन किया। वह ऐसे दौर में रह रही थीं जब देश अहम सामाजिक बदलाव के दौर से गुजर रहा था और महिलाओं की भूमिका के बारे में लोगों की सोच बदल रही थी।
 महिलाओं की भागीदारी पर रिसर्च
उन्होंने अमेरिका के 200 साल के इकनॉमिक इतिहास में महिलाओं की भागीदारी का अध्ययन किया। 1990 में आई उनकी किताब Understanding the Gender Gap: An Economic History of American Women में पुरुषों और महिलाओं की सैलरी में अंतर के इतिहास के बारे में विस्तार से लिखा। 2006 में उन्होंने अपने रिसर्च पेपर The Quiet Revolution That Transformed Women’s Employment, Education, and Family में अमेरिका की इकॉनमी में महिलाओं की भूमिका को चार चरणों में बांटा। उनका कहना है कि पहले तीन चरण इवोल्यूशन वाले रहे जबकि रिवोल्यूशन का दौर 1970 के दशक के अंत में शुरू हुआ।
 वह कहती हैं कि इवोल्यूशनरी फेज में कई बदलाव हुए लेकिन फैसले लेने में उनकी सीमित भूमिका थी। इस कारण उनके रोजगार पर प्रभाव पड़ा। लेकिन रिवोल्यूशन के दौर में महिलाओं ने अपने करियर को अपनी व्यक्तिगत पहचान के अहम हिस्से के रूप में देखा और अपनी वर्किंग लाइफ के बारे में खुद ही फैसले लिए। क्लौडिया ने अपनी रिसर्च में पाया कि गर्भनिरोधक गोलियों की उपलब्धता बढ़ने और तलाक के मामलों में बढ़ोतरी से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा। इस कारण महिलाओं को समाज में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए प्रेरित हुईं।
 हालांकि इस रिवोल्यूशन ने महिलाओं और पुरुषों के बीच सैलरी के अंतर को कम नहीं किया। साल 2014 में उन्होंने एक रिसर्च पेपर A Grand Gender Convergence: Its Last Chapter में कहा कि अमेरिका और दूसरे विकसित देशों में वर्कप्लेस पर महिलाओं और पुरुषों के बीच बराबरी सुनिश्चित करने के लिए सैलरी में अंतर को कम करना आखिरी चुनौतियों में से एक है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पास काम करने का कम समय होता है क्योंकि उन्हें परिवार के लिए समय निकालना होता है। इसके लिए जॉब्स को रिस्ट्रक्चर करने की जरूरत है। टेक्नोलॉजी, साइंस और हेल्थकेयर में ऐसा हो चुका है।

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