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गया में बालू से करते हैं पिंडदान, जानिए क्या है इससे जुड़ा रहस्य
पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है जो 6 अक्टूबर तक रहेगा। पितृ पक्ष में पितरों को खुश करने के लिए और उनका आर्शीवाद पाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय करते हैं। सनातन मान्यता के मुताबिक, जो लोग अपना देह त्याग कर चले गए हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है। सनातन धर्म में श्राद्ध महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य है।
कहा जाता है कि तर्पण और पिंडदान से पितरों को बल मिलता है। वो शक्ति प्राप्त करके परलोक जाते हैं और अपने परिवार का कल्याण करते हैं। जो मनुष्य अपने पितरों के प्रति उनकी तिथि पर अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, उन पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है। पितृपक्ष में लोग बिहार के गया में तर्पण और पिंडदान करते हैं। कहते हैं कि गया में बालू से पिंडदान किया जाता है। लेकिन यह पिंडदान क्यों किया जाता है? आज हम आपको इसका रहस्य बताते हैं।  
क्यों किया जाता है पिंड दान
मान्यता है कि श्राद्ध के दौरान परलोक गए पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं और उनको अपने परिवार से मिलने का मौका मिलता है। पूर्वज पिंडदान, अन्न एवं जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के पास रहते हैं। पितृ पक्ष में मिलने वाले अन्न और जल से पितरों को शक्ति मिलती है और इसी से वह परलोक के अपने सफर को तय करते हैं। इनसे मिलने वाली शक्ति से वह अपने परिवार का कल्याण भी करते हैं। 
बालू से क्यों करते हैं पिंडदान
गया में बालू से पिंडदान किया जाता है जिसका वाल्मीकि रामायण में भी वर्णन है। इसके मुताबिक, वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए गया गए थे। इसके बाद भगवान श्रीराम श्राद्ध के लिए कुछ सामान लेने के लिए बाजार गए। इसी दौरान आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकल रहा है।  
इसी दौरान माता सीता को दशरथजी महाराज की आत्मा के दर्शन हुए। दशरथजी की आत्मा ने उनसे पिंडदान के लिए कहा। इसके बाद माता सीता ने फल्गू नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर दशरथजी महाराज का फल्गू नदी केज किनारे पिंडदान कर दिया। इसके बाद दशरथजी की आत्मा प्रसन्न होकर सीताजी को आशीर्वाद देकर चली गई। मान्यता है कि तब से ही गया में बालू से पिंडदान करने की परंपरा है।

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