कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का अंत किया था
रायपुर। कार्तिक मास की पूर्णिमा को गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने की परंपरा रही है। ऐसा माना जाता है कि इससे सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन और वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुना लाभ मिलता है। मान्यता यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुन:प्राप्त होता है।
दरअसल हिंदू धर्म में हर पूर्णिमा का अपना पौराणिक महत्व है। हर साल 12 पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 13 हो जाती है। इन्हीं में से एक है कार्तिक पूर्णिमा, जिसे त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है।
इसे त्रिपुरी पूर्णिमा इसीलिए कहा जाता है क्योंकि माना जाता है कि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। इसीलिए इस दिन भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो, उस समय छह कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्न होते हैं। ये छह कृतिकाएं हैं- शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन है।
पुराणों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा को भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार लिया था।
महाभारत में भी उल्लेख है
महाभारत काल में भी कार्तिक कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दीप दान करने का उल्लेख मिलता है। युधिष्ठिर जब 18 दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और सगे संबंधियों को देखकर विचलित हो गए थे, तो भगवान श्रीकृष्ण पांडवों को लेकर गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर पहुंचे। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रूप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने का विशेष महत्व है।
शिव त्रिपुरान्तक
मान्यता यह भी है कि इस दिन पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान भोलेनाथ का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी।
बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी का प्राकाट्य हुआ था
मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा को श्रीविष्णु के बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी का प्राकाट्य हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था। इसी दिन शुभ फल पाने के लिए श्रीविष्णु को तुलसी पत्र अर्पित किया जाता है।
राधाजी के पूजन की परंपरा
कार्तिक पूर्णिमा को राधा रानी के दर्शन करने और उनका पूजन करने की भी परंपरा है। माना जाता है कि ऐसा करने से मनुष्य जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है।
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