ब्रेकिंग न्यूज़

 बिना भक्ति के कर्म-धर्म का पालन करते हुये ईश्वरीय फल से वंचित रहना पड़ता है, जानें कर्म करने का सही स्वरूप क्या है?
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 319

(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस सिद्धान्त' ग्रन्थ के 'कर्म' अध्याय का एक अंश...)

भक्ति के बिना धर्म पालन मात्र से मुक्ति तो दूर की बात है, अन्तःकरण-शुद्धि तक ही नहीं हो सकती।

यही कारण है कि बिना ईश्वर-भक्ति के हम धर्म करते हुए भी ईश्वरीय फल से वंचित रहते हैं। मछली गंगाजल में सदा रहती है, पर भक्ति के बिना उद्धार नहीं होता। आप लोग यह आशा करते हैं कि एक डुबकी लगाने मात्र से हम बैकुण्ठ पहुँच जायें। यह सब धोखा है।

आप कहेंगे कि आग में मन लगायें या न लगायें वह तो, एक सती होने वाली नारी को भी जलाती है एवं बरबस अग्निकुंड में डाल दिये गये व्यक्ति को भी जलाती है, उसी प्रकार गंगा जी में डुबकी लगाने से गंगा जी तो अपना फल देंगी ही। किन्तु यह बताओ कि तुमने हजारों बार गंगा-यमुना स्नान किया, क्या निष्पाप हो गये? अर्थात् अब तुम काम, क्रोध, लोभादि से परे हो गये? तब वह सिर खुजलाता है कि ऐसा तो नहीं हुआ। तो फिर पाप कहाँ धुला? वास्तव में ऐसे भोले लोग ही शास्त्र को कलंकित करते हैं। आइये इस प्रश्न को  हल ही कर लीजिये।

देखिये, आप प्रथम एक शीशी में पेशाब भरिये पुनः उसे बन्द करके गंगा जी में डाल दीजिये। पुनः 24 घंटे बाद उस शीशी को निकालिये, क्या कोई इस पेशाब का आचमन करेगा? आप कहेंगे, नहीं। पूछा जाय, क्यों नहीं? तो आप उत्तर देंगे कि शीशी में रहने वाला पेशाब तो गंगा जी में मिला ही नहीं, वह तो बन्द था। बस, तो अब यह बताइये कि पाप कहाँ रहता है? मन में न? आप कहेंगे, हाँ। तो आपने मन को तो गंगा जी से बाहर रखा था, शरीर मात्र से गंगा स्नान कर रहे थे। अतः फिर मन के अन्दर रहने वाला पाप कैसे धुलेगा? शास्त्र तो यह कहते हैं कि जहाँ पापादि रहता हो, उसे शुद्ध वस्तु में एक कर दो तो शुद्ध हो जायेगा। यदि तुम अन्तःकरण को गंगाजी में एक कर दो तो निश्चय शुद्धि हो जाय। अतएव ईश्वर-भक्ति के बिना केवल कर्म से मुक्ति सर्वथा असंभव है। तुलसी के शब्दों में;

वारि मथे बरु होय घृत, सिकता ते बरु तेल।
बिनु हरि भजन न भव तरिय, यह सिद्धान्त अपेल॥

अर्थात् असंभव भी संभव हो जाय, किन्तु बिना ईश्वर-भक्ति के मुक्ति नहीं हो सकती। पुनः रामायण कहती है; 

जिमि थल बिनु जल रहि न सकाई। कोटि भाँति कोउ करै उपाई।।
तथा मोक्ष सुख सुनु खगराई। रहि न सकइ हरि भगति बिहाई।।

वास्तव में माया के तीन गुण हैं - सात्त्विक, राजस एवं तामस उन्हीं गुणों के अनुसार तीन प्रकार के कर्म भी होते हैं - सात्त्विक, राजस और तामस कर्म। उन्हीं कर्मों के अनुसार फल भी होते हैं- सात्त्विक फल, राजस फल एवं तामस फल। उन्हीं फलों के अनुसार लोक भी प्राप्त होते हैं- सात्त्विक लोक अर्थात् स्वर्गादिक लोक, राजस लोक अर्थात् मृत्युलोक एवं तामस लोक अर्थात् नरकादि लोक। इस प्रकार धर्मादि पुण्यकर्म सात्त्विक गुण माया का ही है, अतएव तत्सम्बन्धी लोक भी मायिक ही हैं, अतः तत्सम्बन्धी परिणाम भी मायिक ही हैं। अतएव त्रिगुण के किसी भी कर्म से कर्म ग्रन्थियों का अत्यन्ताभाव नहीं हो सकता। गुणातीत एक मात्र ईश्वर ही है, अतएव यदि कर्म में ईश्वर भक्ति का संयोग न होगा तो वह सात्त्विक हो या राजस हो या तामस किन्तु मायिक होने के कारण सदोष एवं दुःखमय ही होगा। अतएव कर्मयोग में केवल इतना ही समझना है कि मन ईश्वर में नित्य लगा रहे एवं कर्म-धर्म का पालन शरीर से होता रहे। इसमें दो विरोधी बातें हैं।

कर्म करते समय यदि ईश्वर में मन लगा रहेगा तो कर्म कैसे होंगे? क्योंकि इन्द्रियाँ सोचने या निश्चय करने का कार्य नहीं कर सकतीं। यदि मन का संयोग न होगा तो इन्द्रियाँ होते हुए भी न होने के ही बराबर हैं। यह क्रियात्मक रूप से कैसे होगा? यह गंभीररूपेण विचारणीय है। इसका विस्तृत वर्णन साधना के प्रकरण में होगा। अभी इतना ही समझ लीजिये कि 'मन यार में तन कार में', बस यही कर्मयोग है। यदि मन का लगाव ईश्वर से पृथक् कहीं हुआ तो आप कर्मयोग नहीं कर सकते। कर्मयोग तो तभी संभव है जब मन नित्य ईश्वर में रहे, एक क्षण के लिए भी पृथक् न हो।

'यो मां स्मरति नित्यशः', 'एवं सततयुक्ता ये', 'सततं कीर्तयन्तो मां’, ‘तेषां नित्याभियुक्तानां', इत्यादि गीताक्त सिद्धान्तों द्वारा यह निर्विवाद सिद्ध है कि मन का ईश्वर में लगाव नित्य निरन्तर होना चाहिये।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस सिद्धान्त' (कर्म-प्रकरण)
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

Related Post

Leave A Comment

Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).

Chhattisgarh Aaj

Chhattisgarh Aaj News

Today News

Today News Hindi

Latest News India

Today Breaking News Headlines News
the news in hindi
Latest News, Breaking News Today
breaking news in india today live, latest news today, india news, breaking news in india today in english