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 चातुर्मास में करें इन 5 नियमों का पालन, धन-वैभव की होगी प्राप्ति
चातुर्मास भगवान विष्णु जी को समर्पित है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवशयनी एकादशी) से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। चातुर्मास से आशय चार माह की अवधि से है जिसमें सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह आते हैं। इस बार 20 जुलाई से चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, चातुर्मास में भगवान विष्णु पाताल लोक में निद्रासन में चले जाते हैं। इस दौरान वे अपना कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान विष्णु की अनुपस्थिति के कारण विवाह-संस्कार एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। भगवान विष्णु निद्रासन से देवउठनी एकादशी के दिन जागृत होते हैं और पुनः सृष्टि का लालन-पालन करते हैं। शास्त्रों में चातुर्मास के लिए कुछ विशेष नियम बताए गए हैं जिनका पालन करने से जातकों को जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मान्यता के अनुसार चातुर्मास के दौरान काले और नीले रंग के वस्त्र नहीं धारण करने चाहिए। इन वस्त्रों को धारण करने से दोष लगता है और इस दोष की शुद्धि भगवान सूर्यनारायण के दर्शन होती है। इस अवधि में आप उपरोक्त रंग के वस्त्र धारण न करें। 
चातुर्मास में भगवान विष्णु जी का स्मरण करना चाहिए। इस अवधि में दूसरों को भला-बुरा नहीं कहना चाहिए। चातुर्मास में दूसरों की निंदा करना अथवा निंदा को सुनना पाप माना जाता है। अपने मन में किसी के प्रति बुरे ख्याल नहीं लाएं। 
मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक पलंग अथवा खाट पर नहीं सोना चाहिए, बल्कि इस दौरान भूमि पर बिस्तर लगाकर शयन करना चाहिए। इस नियम का पालन करने वाले जातक को भगवान विष्णु जी आशीर्वाद प्राप्त होता है। 
चातुर्मास के दौरान कुछ विशेष खाद्य पदार्थों को भी नहीं खाना चाहिए। इस अवधि में मिर्च, उड़द की दाल एवं चने की दाल का त्याग करना चाहिए। इसके अलावा इन चार माह तक जातकों को मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। चातुर्मास में ऐसा करने वाला जातक पुण्य का भागी होता है। 
चातुर्मास में भोजन करते समय वार्तालाप नहीं करना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा करता है वह पाप का भागी माना जाता है, जबकि मौन रहकर भोजन करने वाले जातक को पुण्य प्राप्त होता है। अगर पके हुए अन्न में कीड़े-मकोड़े पड़ जाएं तो वह अन्न अशुद्ध हो जाता है। उसका सेवन नहीं करें। 
चातुर्मास के दौरान नैतिक मूल्यों और ब्रह्मचर्य का पालन करें। त्याग, तपस्या, जप, ध्यान, स्नान, दान एवं पुण्य के कार्य इस अवधि में लाभकारी और पुण्यकारी माने जाते हैं।

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