गुरु कौन है? भगवान और गुरु एक हैं, किन्तु सर्वत्र गुरु की महिमा को भगवान से अधिक क्यों बतलाया गया है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 346
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का 'सद्गुरु-माधुरी' का यह दूसरा पद है, जिसमें श्री कृपालु जी महाराज 'गुरु-तत्त्व' पर प्रकाश डाल रहे हैं। 24-जुलाई 2020 को 'गुरु-पूर्णिमा' का पावन-पर्व है। अतः यह सर्वश्रेष्ठ अवसर है जब हम 'गुरु' की महिमा को समझने एवं अपने जीवन को गुरु के आदेश व सिद्धान्तों से जोड़ने का प्रयास करें :::
अरे मन! सुनु गुरु-तत्व-विचार।
'गुं रौतीति गुरुः', व्युत्पत्तिहिँ, गुरु मेटत अँधियार।
यद्यपि गुरु-गोविंद दोउ इक, कह वेदादि पुकार।
दोउन महँ कोउ मिलइ मिलइ तब, प्रेम-सुधा-रससार।
तदपि रहस्य सुनहु मन! गुरु बिन, मिलइ न नंदकुमार।
पै 'कृपालु' बिनु हरिहिँ मिलइ गुरु, जय सद्गुरु सरकार।।
भावार्थ - एक तत्वज्ञ अपने मन से कहता है कि हे मन! सद्गुरु तत्त्व का महत्व सुन! जो अज्ञानान्धकार को मिटा दे वही गुरु है। यद्यपि वेदादि के अनुसार गुरु एवं हरि दोनों एक ही हैं एवं इन दोनों में कोई भी कृपा कर दे तो प्रेम सुधा रस मिल जाता है। फिर भी एक रहस्य है, वह यह कि बिना गुरु के हरि की प्राप्ति असंभव है, 'श्री कृपालु जी' कहते हैं जबकि बिना हरि के ही गुरु की प्राप्ति एवं प्रेमानन्द की प्राप्ति सम्भव है। ऐसे सद्गुरु को बार-बार नमस्कार हो।
०० रचनाकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा', सद्गुरु-माधुरी, पद संख्या - 2
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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