संसार में गुरु ढूँढने जायँ तो क्या बातें ध्यान में रखनी चाहिये? गुरु की पहिचान क्या है कि हमको धोखा न हो? (भाग - 1)
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 347
भूमिका - हमारे देश में बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है, जो शास्त्र वेद का नाम तक नहीं जानते वे लोगों के कान फूँक फूँक कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं और धर्म के नाम पर व्यापार चला रहे हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इन सबके विरुद्ध आवाज उठाई एवं निर्भीकतापूर्वक शास्त्रों के अनुसार वास्तविक गुरु कैसा होना चाहिये, यह समझाकर सही मार्गदर्शन किया। जीवनपर्यन्त उन्होंने किसी का भी कान नहीं फूँका, तब ही उनके बारे में सब बाबा यही कहते थे कि 'न चेला बनाता है, न बनाने देता है'। वे स्वयं भी कहते थे 'न गुरु न चेला, कृपालु फिरे अकेला'। दम्भी बाबाओं के विषय में उनके प्रवचन का अंश प्रस्तुत किया जा रहा है....
★ नोट - यह प्रवचन कुल 2-भागों में प्रकाशित होगा। आज इसका पहला भाग नीचे दिया जा रहा है, शेष प्रवचन अंश कल दूसरे भाग में प्रकाशित होगा। सभी सुधी पाठकगणों से निवेदन है कि सम्पूर्ण लाभ हेतु दोनों भाग गंभीरतापूर्वक अवश्य पठन-मनन करें!!!
"....प्रायः लोग बाहरी व्यवहार एवं वेशभूषा को देखकर किसी के महापुरुष होने का अनुमान लगाते हैं। कुछ लोग इसी बात से ही प्रभावित हो जाते हैं कि अमुक बाबा बड़ा त्यागी है, फलाहारी ही, कोई घोर जंगल में रहता है, कोई जटा रखे है, कोई मौन रहता है, कोई शास्त्रों का ज्ञाता है अतएव महापुरुष है। ऐसा निर्णय कर लेते हैं। जहाँ तक भगवल्लीला-श्रवणादि का संबंध है, उससे सुनने में कोई हानि नहीं है। किन्तु सिद्धान्त सुनना अथवा उसे महापुरुष मानकर शरणागत होना, महान घातक है।
कुछ लोग अखबारी प्रोपेगेंडा अर्थात अमुक महात्मा का बड़ा नाम है, उसे बहुत से लोग जानते हैं, अतएव वह महापुरुष है, ऐसा समझते हैं। वे भी बड़ी भूल करते हैं क्योंकि वास्तविक महापुरुष तो प्रतिष्ठादि प्रपंचों से दूर रहता है।
कुछ लोग भौतिक सिद्धियों आदि के चमत्कार को देखकर आइडिया लगाते हैं जैसे अमुक बाबा कमंडल से राख, बादाम निकाल देता है, रुपया बना देता है अतएव वह सिद्ध महापुरुष है, ऐसा मान लेते हैं। वे भी महान भूल करते हैं क्योंकि उपरोक्त कार्य तामसी व्यक्ति ही लोक-प्रतिष्ठादि के निमित्त करता है, जो कि महापुरुष के सिद्धान्त से त्याज्य है। कुछ लोग गुरु-परम्परा से अर्थात अमुक महापुरुष, हमारे पिता का गुरु था, अतएव उसकी गद्दी पर बैठने वाला व्यक्ति हमारा गुरु होगा, ऐसा करते हुये उसे महापुरुष मान लेते हैं। यह भी बड़ी भूल है क्योंकि परम्परा से यह आवश्यक नहीं है कि सभी उत्तराधिकारी महापुरुष ही हों।
कुछ लोग सांसारिक पदार्थ-धन, प्रतिष्ठादि देने वालों को महापुरुष समझ लेते हैं। यह भी महानतम भूल है क्योंकि महापुरुष सांसारिक पदार्थ नहीं दिया करता। वह जानता है कि सांसारिक पदार्थ, जीव को और भी अधिक उन्मत्त बना देता है। ऐसे ही जीव नशे में है। महापुरुष तो अलौकिक दिव्य अनिर्वचनीय भगवद्विषय ही प्रदान करता है।
कुछ लोग किसी के स्वयं ही बताने पर कि मैंने अमुक पहाड़ पर इतने वर्ष तप किया था एवं वहाँ मुझे भगवत्प्राप्ति हुई थी, मेरी आयु दो सौ वर्ष की है, मैंने कई बार कायाकल्प कर ली है, महापुरुष मान लेते हैं। किन्तु यह भी अत्यन्त ही नासमझी की बात है, क्योंकि महापुरुष अपने आपको, जहाँ तक होता है, छिपाता ही है। वह स्वयं तो परम अन्तरंग अधिकारी को ही अपने महापुरुषत्व का अनुभव कराता है।
फिर, क्या ये कान फूँकने वाला गुरु आवश्यक है? एक प्रश्न पैदा होता है।....." (शेष प्रवचन कल दूसरे भाग में प्रकाशित होगा..)
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2016 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)
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