क, ख, ग, घ आदि सभी भगवान के ही नाम हैं; जानिये 'दीक्षा' का रहस्य क्या है? गुरु शिष्य को कब दीक्षा देता है? (भाग - 2)
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 348
भूमिका - हमारे देश में बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है, जो शास्त्र वेद का नाम तक नहीं जानते वे लोगों के कान फूँक फूँक कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं और धर्म के नाम पर व्यापार चला रहे हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इन सबके विरुद्ध आवाज उठाई एवं निर्भीकतापूर्वक शास्त्रों के अनुसार वास्तविक गुरु कैसा होना चाहिये, यह समझाकर सही मार्गदर्शन किया। जीवनपर्यन्त उन्होंने किसी का भी कान नहीं फूँका, तब ही उनके बारे में सब बाबा यही कहते थे कि 'न चेला बनाता है, न बनाने देता है'। वे स्वयं भी कहते थे 'न गुरु न चेला, कृपालु फिरे अकेला'। दम्भी बाबाओं के विषय में उनके प्रवचन का अंश प्रस्तुत किया जा रहा है....
★ नोट - कल, 21 जुलाई को इस प्रवचन का पहला भाग प्रकाशित किया गया था। कल की अंतिम पंक्ति से आगे का प्रवचन, अर्थात भाग - 2 आज प्रकाशित किया जा रहा है। सभी सुधी पाठकगणों से निवेदन है कि कृपया सम्पूर्ण लाभ हेतु प्रवचन के दोनों भाग अवश्य पढ़ें, धन्यवाद!!
.....जो लोग कान फूँकते हैं, इनसे पूछो पहले कि आप कान में क्या देना चाहते हैं? तो वो कहेंगे - 'मंत्र'। किसका मंत्र? भगवान का। उस मंत्र का क्या मतलब है? हे भगवान! हम आपकी शरण में हैं। हे भगवान! आपको नमस्कार है। ये दो अर्थ वाले सारे मंत्र हैं, जितने सम्प्रदाय हैं। तो क्यों जी, अगर हम हिन्दी में कह दें, अंग्रेजी में कह दें, फारसी में कह दें, हे भगवान! आपको नमस्कार है तो उसको भगवान स्वीकार नहीं करेंगे?
आपमे जो संस्कृत में हमारे कान में मंत्र दिया या देना चाहते हैं, 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय', 'क्लीं कृष्णाय नमः', 'राम रामाय नमः', 'नारायण चरणौ शरणं प्रपद्ये' इत्यादि मंत्र हैं तो ये कान में जो आप देना चाहते हैं उसको हम हिन्दी में बोलें तो भगवान स्वीकार नहीं करेंगे? क्या जो राम-राम, श्याम-श्याम लोग कहते हैं, इस राम नाम से आपका मंत्र अधिक महत्त्व रखता है? वो कहेंगे क्योंकि ये हमारे गुरु-परम्परा से आया है, सिद्ध-मन्त्र है। तो तुम्हारे सिद्ध-मन्त्र में विशेष बात होगी, चमत्कार होगा कुछ? हाँ, बिल्कुल। तो जब तुम कान में हमें मन्त्र दोगे तो हमको कोई चमत्कार की फीलिंग होगी, अगर नहीं हुई तो या तो गुरुजी गलत हैं या मन्त्र गलत है। अब गुरुजी कहेंगे, तुम्हारा पात्र खराब होगा तो फीलिंग नहीं होगी, चमत्कार की। तो तुमने ये नहीं सोचा कि अगर पात्र खराब है तो गुरुजी को मन्त्र नहीं देना चाहिये।
आजकल 12 दिन के बच्चे के भी कान फूंक देते हैं ताकि उसे और कोई शिष्य न बना ले। माइक से मन्त्र दे रहे हैं। हजारों लोग चेले हो गये सुन करके। जो शास्त्र-वेद का नाम तक नहीं जानता, वो भी गुरु बन जाता है। शिष्यों की लाइन लगाता है और वेद कहता है,
'श्रोत्रियं ब्रम्हनिष्ठम्'
जो थियोरिटिकल मैन भी हो, प्रैक्टिकल मैन भी हो उसी को गुरु बनाना है। वो चेला नहीं बनायेगा, तुमको गुरु बनाना होगा उसको। वो चेला तब बनायेगा जब तुम्हारा अन्तःकरण सेंट परसेन्ट शुद्ध हो जायेगा। अन्तःकरण से सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण चला जाये। काम, क्रोध, लोभ, मोह चला जाये। भक्ति करते-करते जब अन्तःकरण पूर्णतया शुद्ध हो जायेगा, एक साल, दो साल, एक जन्म, दो जन्म, दस जन्म में तब गुरु देगा, मन्त्र कान में। पहले नहीं देगा। मन्त्र देते ही भगवत्प्राप्ति, मायानिवृत्ति, सब काम खत्म।
जैसे आप अपने घर में पहले सब तारों की फिटिंग कर लेते हैं। पंखें लगा लें, बल्ब लगा लें। अब कहिये, पॉवर हाऊस से कि हमको बिजली दे दो, इलेक्ट्रिसिटी दे दो। सब फिटिंग होने के पश्चात पॉवर हाऊस आपको बिजली देता है। अब आपने घर में कुछ लगाया ही नहीं और आप पॉवर हाऊस से कहते हैं, बिजली दे दो तो पॉवर हाऊस बिजली कहाँ देगा?
दीक्षा से तात्पर्य है - दिव्य प्रेम दान। जब तक अन्तःकरण का बर्तन ही तैयार नहीं होगा तो गुरु कहाँ प्रेम देगा क्योंकि आपका पात्र मायिक है और प्रेम प्राकृत अन्तःकरण में धारण नहीं हो सकता। गौरांग महाप्रभु ने कहा;
दीक्षा पुरश्चर्या विधि अपेक्षा न करे।
भगवान का नाम दीक्षा की अपेक्षा नहीं करता।
नो दीक्षां न च सत्क्रियां न च पुरश्चर्याम् मनागीक्षते।
(पद्यावली)
भगवान के नाम में भगवान की शक्ति भरी है। राम राम राम, बस इतना ही काफी है। श्याम श्याम श्याम, राधे राधे राधे - बस। वो संस्कृत, गुजराती, मराठी, बंगाली किसी भाषा में हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अरे, यशोदा मैया ने तो कभी राम राम, श्याम श्याम भी नहीं कहा। 'ऐ कनुआ! इधर आ'। 'कनुआ' - ये कौन से शास्त्र में नाम है, कनुआ। कृष्ण का नाम कनुआ, बलराम का नाम बलुआ। 'ऐ बलुआ, इधर आ'। क, ख, ग, घ हर एक नाम है, भगवान का। वेद कहता है कं ब्रह्म, खं ब्रह्म, अकारो वासुदेवः। 'अ' माने श्रीकृष्ण, 'उ' माने शंकरजी, भगवान के सभी नाम हैं, हर नाम में भगवान की भावना होनी चाहिये, उसका लाभ मिलेगा। मंत्र देते ही यानी दीक्षा देते ही माया का अत्यन्ताभाव हो जायेगा और अनन्त आनन्द मिलेगा। त्रिगुण, त्रिकर्म, त्रिदोष, पंचक्लेश, पंचकोश सबसे सदा को छुट्टी मिल जायेगी।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2016 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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