वातावरण का प्रभाव हमारी चित्तवृत्ति पर पड़ता है; इसी के प्रभाव में आकर हम साधना-मार्ग से संसार की ओर मुड़ जाते हैं!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 356
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज दूसरे कुसंग 'वातावरण का प्रभाव' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ दूसरा कुसंग - 'वातावरण का प्रभाव'
...दिन में कई बार ऐसा होता है कि आपको जैसा भी वातावरण मिलता है, वैसे ही आपकी मनोवृत्तियाँ भी बदलती जाती हैं। कभी तो यह विचार होता है कि अरे! पता नहीं कब टिकट कट जाये, शीघ्र से शीघ्र कुछ साधना कर लेनी चाहिये। संसार तो अपने आप छोड़ देगा नहीं, फिर संसार ने पकड़ भी तो नहीं रखा है, मैं स्वयं ही जा जाकर उसमें पिस रहा हूँ।
कभी यह विचार उत्पन्न होता है, अरे! कर लेंगे, जल्दी क्या है, समय बहुत पड़ा है, ऐसी भी क्या जल्दी है। फिर अभी अमुक-अमुक संसार का काम (ड्यूटी) भी तो करना है। रात तक कर लेंगे, कल कर लेंगे... इत्यादि। कभी-कभी यह विचार पैदा होता है, अरे यार! खाओ, पियो, मौज उड़ाओ, चार दिन की ज़िंदगी है, आगे किसने देखा है क्या होगा, भगवान वगवान को बिगड़े हुये दिमाग की उपज है.... पता नहीं वह मौज उड़ाने का क्या अर्थ समझता है? अरे मौज तो महापुरुष भी चाहता है।
अस्तु, यह सब अन्तरंग गुण-वृत्तियों का दैनिक परिवर्तनशील अनुभव है जिसे आप भली-भाँति समझते हैं। अब यह देखिये कि उपर्युक्त रीति से अपनी ही मनोवृत्तियाँ कैसे बदल जाती हैं। किसी क्षण में मान लीजिये कि आपकी मनोवृत्ति यह हुई कि मैं चलूँ कुछ साधना कर लूँ। इतने में ही रजोगुण या तमोगुण आदि का वातावरण विशेष मिल गया, अर्थात स्त्री पुत्रादि का आसक्ति-वर्धक कुछ विषय मिल गया तो हमारी मनोवृत्ति उन गुणों के वातावरण को पाकर फिर बदल गई एवं हम तत्क्षण साधना से च्युत हो गये। यह सब अन्तरंग त्रिगुण एवं बहिरंग सामग्री की महिमा है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज
०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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