अनधिकारी से अपनी अन्तरंग साधना एवं भगवदीय अनुभवों की चर्चा करने से भी साधक हानि उठा सकता है!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 359
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज पाँचवें कुसंग 'अनधिकारी से साधनादि की अन्तरंग चर्चा' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ पाँचवाँ कुसंग - अनधिकारी से साधनादि की अन्तरंग चर्चा
अश्रद्धालु एवं अनधिकारी से अपने मार्ग अथवा साधनादि के विषय में वाद विवाद करना भी कुसंग है, क्योंकि जब अनधिकारी को सर्वसमर्थ महापुरुष भी आसानी के साथ बोध नहीं करा पाता, तब वह साधक भला किस खेत की मूली है। यदि कोई परहित की भावना से भी समझाना चाहता है, तब भी उसे ऐसा नहीं करना चाहिये क्योंकि अश्रद्धालु होने के कारण उसका विपरीत ही परिणाम होता है, साथ ही उस अश्रद्धालु के न मानने पर साधक का चित्त अशांत हो जाता है।
शास्त्रानुसार भी भक्ति मार्ग को लेकर वाद-विवाद करना घोर पाप है। भरत जी कहते हैं;
भक्त्या विवदमानेषु मार्गमाश्रित्य पश्यतः।
तेन पापेन युज्येत यस्यार्योनु रमते गताः।।
(वाल्मीकि रामायण)
अर्थात भक्तिमार्ग को लेकर वाद-विवाद सरीखा महान पाप मुझे लग जाय यदि राम के वन जाने के विषय में मेरी राय रही हो। अतएव न तो वाद-विवाद सुनना चाहिये, न तो स्वयं ही करना चाहिये। यदि अनधिकारी जीव इन विषयों को नहीं समझता तो इसमें आश्चर्य या दुःख भी नहीं होना चाहिये, क्योंकि कभी तुम भी तो नहीं समझते थे। यह तो परम सौभाग्य महापुरुष एवं भगवान की कृपा से प्राप्त होता है कि जीव भगवद विषय को समझकर उसकी ओर उन्मुख हो।
अनधिकारी को भगवद विषयक कोई अन्तरंग रहस्य भी न बताना चाहिये क्योंकि वर्तमान अवस्था में अनुभवहीन होने के कारण अनधिकारी उन अचिन्त्य विषयों को नहीं समझ सकता, उलटे अपराध कमाकर अपनी रही सही आस्तिकता को भी खो बैठेगा। साथ ही अन्तरंग रहस्य बताने वाले साधक को भी अशान्त करेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज
०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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