नेत्रों को बल कैसे मिले? पढिय़े चाक्षुषोपनिषद
चाक्षुषोपनिषद अपने नाम की सार्थकता को व्यक्त करता है जिसमें नेत्रों के महत्व तथा उनके रोगों को दूर करने के अनेक उपाए बताए गए हैं जो हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा व्यक्त किए गए हैं। चाक्षुषोपनिषद कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के अंतर्गत आता है। इसमें सूर्य देव से प्रार्थना की गई है कि वह सभी प्राणियों के नेत्रों को ज्योति प्रदान करें उन्हें नेत्रों के रोगों से मुक्त करें।
सभी चक्षुओं की ज्योति से संसार को देख पाएं सृष्टि की महत्ता को जान सकें। चाक्षुषोपनिषद उपनिषद में चक्षु रोगों को दूर करने की प्रभावकारी उपायों का उल्लेख किया गया है। चक्षुओं की शक्ति का आधार सूर्य देव को माना गया है जिमें सूर्य देव की स्तुति का वर्णन मिलता है। सूर्य देव को नेत्रों का रक्षक माना गया है उनकी आराधना से नेत्रों के कष्ट से बचा जा सकता है। सूर्य देव जिस प्रकार संसार में अपने तेज को फैला कर अंधकार का नाश करते हैं और जिस कारण से पृथ्वी में जीवन व्याप्त है उसी प्रकार सूर्य देव नेत्रों की ज्योति को उत्पन्न करते हैं। उनकी प्रदान कि गई रोशनी से ही व्यक्ति सुखों का भोग कर पाता है सूर्य देव के सामथ्र्य का वर्णन करते हुए चक्षुओं के सभी रोगों को दूर करने के लिए उनसे प्रार्थना की गयी है।
चाक्षुषोपनिषद में भगवान सूर्य देव को जिन्हें भासकर, आदित्य, दिनकर और रवि नामों से जाना जाता है उनके रूप गुणों की महिमा को दर्शाया है। सूर्य भगवान से हाथ जोड़ कर प्रार्थना की गई है कि सूर्य देव सभी जन में अज्ञान रूपी अंधकार के बंधन दूर करें उन्हें इन समस्त बन्धनों से मुक्त करके दिव्य तेज़ प्रदान करें जिससे सभी प्राणी जगत का महत्व जान पाएं उसकी दार्शनिकता को समझ सकें। चाक्षुषोपनिषद में तीन मुख्य मन्त्रों का उल्लेख किया गया है जिनके उच्चारण से चक्षु विद्या का वर्णन हो पाया है। इस ज्ञान को प्राप्त करके ही नेत्रों को बल मिलता है।
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