बदामी जहां आज भी टीपू सुल्तान की विशाल तोपें रखी हुई हैं
अपने अनुपम मंदिरों के लिए प्रसिद्ध बदामी कर्नाटक का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह बगलकोट जिला में पड़ता है। यहां स्थित मंदिरों की खासियत यह है कि इन्हें पहाड़ों और शिलाखंडों को काटकर बनाया गया है। ये मंदिर चालुक्यों की धार्मिक सहिष्णुता और सहनशीलता के प्रतीक हैं।
दो विशाल पहाडिय़ों के बीच स्थित बदामी की स्थापना चालुक्य वंश के पराक्रमी शासक पुलकेशिन प्रथम ने छठी शताब्दी में की थी। पहले वातापी के नाम से प्रचलित यह जगह 540 से 757 ईसवी तक चालुक्य साम्राज्य की राजधानी रही है। इसकी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व से आकर्षित होकर प्रतिवर्ष अनेक सैलानी और पुरातत्ववेत्ता यहां आते हैं।
बदामी में चार प्रसिद्ध गुफाएं हैं जो पहाड़ी पर स्थित हैं। यहां पहुंचने के लिए सीढिय़ों की एक लंबी कतार को पार करना होता है। चारों गुफाओं में से तीन का संबंध शिव और विष्णु से है जबकि आखिरी गुफा में अनेक जन देवी-देवताओं की मूर्तियां तथा पाश्र्वनाथ की एक भव्य प्रतिमा है। चालुक्य विष्णु के उपासक थे। उन्होंने 600 सालों तक राज किया। लेकिन पल्लवों के हाथों उन्हें पराजय के बाद कुछ समय तक उन्हें शासन से बाहर भी रहना पड़ा । राज सत्ता पुन: प्राप्त करने पर उनका अध्यात्म की ओर रूझान बढ़ा। इससे बाद से उन्होंने शिव और जैन उपासकों को भी मंदिर बनाने के लिए आमंत्रित किया।
सबसे पहली गुफा में शिव-पार्वती के संयुक्त रूप अर्धनारीश्वर के दर्शन होते हैं। इस प्रतिमा का दायां भाग शिव को और बायां भाग पार्वती को दर्शाता है। एक अन्य मूर्ति में शिव और विष्णु का संयुक्त रूप समाहित है। यहां 18 भुजाओं वाले नटराज भी विराजमान हैं। कुल मिलाकर यह गुफा भगवान शिव जी को समर्पित है।
दूसरी गुफा विष्णु को समर्पित है जिसमें वराह और त्रीविक्रम अवतारों का दिखाया गया है। वराह चालुक्यों को प्रतीक चिन्ह्व था। चौथी और आखिरी गुफा जैन धर्म से संबंद्ध है। इसलिए इसमें तीर्थंकर आदिनाथ सहित अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियां स्थापित हैं। ये गुफाएं एक झुंड में बनाई गई हैं। यहां पहुंचना भी बहुत सुविधाजनक है। यह बस स्टैंड से केवल दो किलोमीटर की दूरी पर हैं। रास्ते में यहां पहुंचने के लिए अनेक चिह्न बनाए गए हैं जिनकी सहायता से पर्यटक यहां आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।
इन गुफाओं से बाहर निकलकर नीचे देखने पर भूतनाथ मंदिर दिखाई देता है। इस दिशा से अगस्त्य तीर्थ कुंड की छटा देखते ही बनती है। भूतनाथ मंदिर में भगवान शिव के एक अलग ही रूप के दर्शन होते हैं। इसमें शिव को आध्यात्म और प्रेत के देवता के रुप में दिखाया गया है। इन मूर्तियों में भगवान शिव का क्रोधित रूप दिखाई पड़ता है।
18वीं शताब्दी में टीपू सुल्तान ने बदामी का भ्रमण किया था। यहां की खूबसूरती से वह बहुत प्रभावित हुआ और उसने बदामी की पहाडिय़ों पर किले का निर्माण कराया। आज भी यहां टीपू सुल्तान के समय की विशाल तोपें रखी हुई हैं। यह किला उस पहाड़ी पर निर्मित है जिसे काटकर मंदिरों का निर्माण किया गया था।
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