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 देवस्नान चंदन जात्रा पूजा विधान के साथ बस्तर गोंचा पर्व का हुआ शुभारंभ
  - 5 जुलाई तक अनसर काल में प्रभु जगन्नाथ के नहीं होंगे दर्शन
 जगदलपुर । रियासत कालीन बस्तर गोंचा पर्व में देवस्नान चंदन जात्रा पूजा विधान 22 जून को शुभ मुहर्त में प्रारंभ हुआ। इससे पूर्व 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के ब्राह्मणों द्वारा भगवान शालीग्राम को ग्राम आसना से श्रीजगन्नाथ मंदिर लाने की परंपरा के निर्वहन के बाद इंद्रावती नदी के महादेव घाट से पवित्र जल की पूजा उपरांत श्रीजगन्नाथ मंदिर लाया गया। तत्पश्चात शताब्दियों पुरानी परंपरानुसार भगवान शालीग्राम का पंचामृत, चंदन एवं इंद्रावती नदी के पवित्र जल से अभिषेक कर विधि-विधान से पूजा संपन्न किया गया। इससे पूर्व प्रभु जगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा एवं बलभद्र के विग्रहों को श्रीमंदिर के गर्भगृह में पूजा विधन के साथ आसन से उतारकर नीचे स्थापित कर देवस्नान चंदन जात्रा पूजा विधान संपन्न किया गया और भगवान के 22 विग्रहों को मुक्ति मंडप में स्थापित किया किया गया। प्रभु जगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा एवं बलभद्र के विग्रहों को मुक्ति मंडप में स्थापित किये जाने के साथ ही भगवान का अनसर काल प्रारंभ होकर 5 जुलाई तक जारी रहेगा, इस दौरान प्रभु जगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा एवं बलभद्र का दर्शन वर्जित होगा। 6 जुलाई को नेत्रोत्सव पूजा विधान के साथ प्रभु जगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा एवं बलभद्र के दर्शन लाभ श्रृद्धालुओं को श्रीमंदिर के बाहर होगें।
बस्तर गोंचा समिति के अध्यक्ष विवेक पांडे ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवस्नान चंदन जात्रा पूजा विधान में भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा एवं बलभद्र का चंदन से अभिषेक होने पर चंदन के ठंडे तासीर के कारण वे अस्वस्थ हो जाते हैं। भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा एवं बलभद्र के अस्वथता के इस समय को अनसर काल कहा जाता है। अनसर काल के दौरान भगवान के अस्वस्थता की स्थिति में दर्शन करना अनुचित माना गया है, इस वजह से दर्शन वर्जित होते हैं।
360 घर आरण्यक ब्राम्हण समाज के अध्यक्ष ईश्वर नाथ खम्बारी ने बताया कि आज बस्तर गोंचा पर्व के 616 वर्षो की ऐतिहासिक रियासत कालीन परम्परानुसार देवस्नान चंदन जात्रा पूजा विधान संपन्न किया गया। इसके साथ ही बस्तर गोंचा पर्व प्रारंभ हो गया है। उन्होने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंदन जात्रा पूजा विधान के पश्चात भगवान जगन्नाथ का 15 दिवसीय अनसर काल की अवधि होती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ होते हैं, तथा भगवान के अस्वथता के हालात में दर्शन वर्जित होते हैं। भगवान जगन्नाथ के स्वास्थ्य लाभ के लिए औषधियुक्त भोग का अर्पण कर भगवान जगन्नाथ की सेवा 15 दिनों के अनसर काल में 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के सेवादारों एवं पंडितों के द्वारा किया जायेगा। औषधियुक्त भोग के अर्पण के पश्चात इसे श्रधालुओं में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। विशेष औषधियुक्त प्रसाद का पूण्य लाभ श्रद्धालु अनसर काल के दौरान जगन्नाथ मंदिर में पहुचकर प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन दर्शन वर्जित होगा।

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